BY-THE FIRE TEAM
अपने देश में देशभक्ति साबित करने का सबसे बड़ा मापदंड है कि कितने कड़क तरीके के आप ट्रेंडी स्लोगन बोल सकते हैं. सोशल मीडिया पोस्ट में, अपने भाषणों में जितना चिल्लाकर नारा लगाएंगे, उतने बड़े देश भक्त कहलाएंगे.
और सबसे सदाबहार है- पाकिस्तान को सब सीखाएंगे. इस स्लोगन के कई वेरिएशन हैं और ताजा वेरिएशन है कि सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान को मजा चखाना. सर्जिकल स्ट्राइक नया और वजनी शब्द है.
एक परम देश भक्त ने 2 साल पहले सर्जिकल स्ट्राइक का स्कोप बढ़ा दिया. उनके मुताबिक जिस तरह इसके जरिए पाकिस्तान को मजा चखाया गया, उसी तरह चीन के खिलाफ आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत है.
इस स्लोगन के बाद ‘देशभक्तों’ ने खास कैंपेन चलाए, जिसमें मेड इन चाइना के बॉयकाट करने का प्रण लिया गया. इस मुहिम को हवा दी बीजेपी और आरएसएस ने, खूब हो हंगामा हुआ और जमकर प्रचार हुआ.
लेकिन कमाल है कि उसके बाद से चीन के सामानों की आवाजाही और तेजी से बढ़ी है. . डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरन ट्रेड के वेबसाइट पर सारे आंकड़े जिनको आप खुद देख सकते हैं.
चूंकि 2014 के बाद से अल्ट्रा नेशनलिस्ट की एक नई कैटेगरी बनी है, इसलिए चीन से हमारे व्यापार का आंकड़ा उसके बाद से ही देखते हैं.
2013-14 में हमारे कुल इंपोर्ट का करीब 11% चीन से आता था. 2017-18 में यह 16% से भी ज्यादा हो गया है. इसका सीधा मतलब यह है कि-
दुनिया के किसी भी इलाके से जिस रफ्तार से हम सामान इंपोर्ट कर रहे हैं उससे कहीं ज्यादा रफ्तार से हम चीन से इंपोर्ट कर रहे हैं.
खयाल रहे कि चीन से हम ना तो गोल्ड और या ना ही क्रूड इंपोर्ट करते हैं. ये दोनों हमारे इंपोर्ट बास्केट का सबसे बड़ा हिस्सा रहा है.
ऐसे में अगर हमारे कुल इंपोर्ट का 16% से ज्यादा चीन से ही आ रहा है तो इसका मतलब हुआ कि गोल्ड और कच्चे तेल के अलावा हम जो भी इंपोर्ट करते हैं, वो या तो पूरी तरह से चीन से ही आता है या उसका बड़ा हिस्सा चीन से ही आता है.
अब देखिए कि पिछले 4 साल में चीन के साथ हमारा इंपोर्ट किस तरह से बढ़ा है-
अब आप सबके मन में एक ही सवाल आएगा कि इंपोर्ट तो व्यापार का एक ही पहलू है. इंपोर्ट तो बढ़ा है, लेकिन अब इससे कहीं ज्यादा तेजी से चीन हमारे सामानों का खरीदार बना है तो ये तो बड़ी अच्छी बात है.
यहां मैं थोड़ा आपको निराश कर दूं. हम जितना सामान चीन को 2013-14 में बेच पाए थे पिछले चार साल में उस लेवल पर भी नहीं पहुंच पाए हैं. ग्रोथ की तो बात ही भूल जाइए.
और यही वजह है कि चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा जो 2012-13 में 38 अरब डॉलर का था वो 2017-18 में करीब 63 अरब डॉलर पहुंच गया है.
मतलब ये व्यापार तेजी से तो बढ़ रहा है, लेकिन इस तेजी का सारा फायदा चीन को ही हो रहा है.