जोरामथांगा: उग्रवादी से सीएम की कुर्सी तक का सफर


BYसंजीव शर्मा


साल 1986 में मुख्यधारा में शामिल होने से पहले मिजोरम के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री जोरामथांगा एक विद्रोही थे। जब वह अंडरग्राउंड थे तो एक गुप्त मिशन पर बीजिंग गए, फिर इस्लामाबाद में समय बिताया, चटगांव में एक हमले से बच निकले और फिर भारतीय जासूसों के साथ देश लौटने के लिए बातचीत की।

शनिवार को जोरामथांगा ने तीसरी बार मिजोरम के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। पूर्वोत्तर में कांग्रेस के अंतिम किले को भी ध्वस्त करते हुए जोरामथांगा की मिजो नैशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 40 में से 26 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया।

74 वर्षीय जोरामथांगा इससे पहले 1998 और 2008 में राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं। एमएनएफ अध्यक्ष के ऑफिस में दो बड़ी तस्वीरें लगी हैं, इसमें से एक तस्वीर एमएनएफ फाउंडर लालडेंगा की है तो दूसरी तस्वीर 2003 की है, जिसमें वह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ खड़े हैं। आपको बता दें कि एमएनएफ नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का हिस्सा है। एनईडीए को लगभग ढाई साल पहले बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट की सभी कांग्रेस विरोधी पार्टियों को एक करने के लिए बनाया था।

1959 के अकाल से लड़ने के लिए एक सिविल सोसाइटी के रूप में शुरू हुई एमएनएफ 60 के दशक में एक विद्रोह के रूप में तब्दील हो गई। एमएनएफ को पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) से वित्त पोषण और प्रशिक्षण मिला। मार्च 1966 में लालडेंगा की अगुवाई वाले मिजो नैशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने भारत से आजादी की घोषणा कर दी थी।

एमएनएफ को लगा था कि सरकार प्रदेश में आए अकाल से ठीक तरीके से निपट नहीं पाई और निष्क्रिय रही है। एमएनएफ का यह विद्रोह पूर्वोत्तर में नगा विरोध के बाद दूसरा सबसे बड़ा विद्रोह था। इस दौरान 20 सालों तक जोरामथांगा अंडरग्राउंड होकर विभिन्न देशों में घूमते रहे।

दोनों पक्षों से मानवाधिकारों के उल्लंघन, हिंसा, लोगों के विस्थापन के बावजूद 1986 में सरकार और एमएनएफ के बीच मिजोरम पीस एकॉर्ड पर हस्ताक्षर हुए और इस समस्या का हल निकाल लिया गया।

जुलाई, 1990 में लालडेंगा की मृत्यु फेफड़े के कैंसर से हो गई और उसके बाद उनके कभी लेफ्टिनेंट और सचिव रहे जोरामथांगा पार्टी के अध्यक्ष बने। जोरामथांगा के नेतृत्व वाले एमएनएफ ने 1998 में 21 विधायकों के साथ सरकार बनाई, उन्होंने 2003 के विधानसभा चुनाव में भी सत्ता बरकरार रखी और वह मुख्यमंत्री बने रहे।

लेकिन उनकी पार्टी को 2008 के चुनाव में करारी हार झेलनी पड़ी और यह पार्टी केवल तीन सीटों तक ही सिमट कर रह गई थी। जोरामथांगा दोनों सीटों पर हार गए थे। लेकिन समय पलटा और 2018 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर जोरामथांगा ने जीत दर्ज की।

लेखक पंजाब केसरी टी वी से हैं।

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