उन्मुक्तता के मायने?


BYनरेंद्र चौहान


शर्मो हया, लोक लाज व संस्कारों से बनी मानवीय मूल्यों की दिवार उन्मुक्तता के बढते प्रभाव से भरभराने लगी है।आखिर भरभराए भी क्यों न उन्मुक्तता को अब हमने आजादी का पैरोकार मान लिया है। लिहाजा किसी के भी पहनावे व उन्मुक्त प्रेम प्रदर्शन पर टिप्पणी करना आपकी घटिया सोच का प्रमाण हो सकता है।

तो बेहतर है कि कौन क्या पहनता है, कैसे पहनता है, क्या छुपाता है, क्या दिखाता है इस पर अपनी राय देने का दुस्साहस न करें। वैसे भी शरीर हर किसी की निजी संपति है वो जिस अंग को चाहे ढके जिसे चाहे खुला छोड़ दें।

यह आजादी है पहनने की या न पहनने की। हां याद रखिए आप गलती से भी अत्याधुनिकता की मिसाल बनी ऐसी पढी लिखी देवियों की तरफ अपनी नजरें इनायत न करें, जो अक्सर अधिकांश लोग करने में असमर्थ हो जाते हैं। जिनमें शायद मैं भी हूं।

अगर ऐसा हुआ तो आपको वहशी, बलात्कारी न जाने क्या-क्या समझा जा सकता है। और हां स्त्री के प्रति पुरूष व पुरूष के प्रति स्त्री के आकर्षण की सहज प्रवृत्ति की दलील भी यहां बिल्कुल नहीं चलेगी। तो कामुकता के उस प्राकृतिक गुण को भूल जाना ही बेहतर है जिससे इतिहास में कई मुनियों की तपस्या अप्सराओं के हुस्न के जादू के आगे नहीं टीक सकी। भले ही वे आपसे ज्यादा कामुक रहें होंगे लेकिन आप पर इस उन्मुक्त वातावरण में अपने आप पर संयम रखने की चुनौती है।

इससे पहले कि आजादी के परवाने मुझे दकियानूस , संकीर्ण मानसिकता के तमगो से नवाजे मैं बताना चाहूंगा कि मैं केवल उन्मुक्तता की सीमा पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा हूं श्रंगार पर नहीं। उम्मीद है इक्कीसवीं सदी के पढे लिखे आजाद ख्यालात के पक्षधर आजादी के परवाने इस अंतर को समझते हों। श्रृंगार व उन्मुक्तता में दिन रात का अंतर है।

खैर यह विषय बेहद संवेदनशील विषय है खासकर ऐसे दौर में जब हम हर समाजिक वर्जना को तोड़ना अपने आधुनिक होने या पढा लिखा होने का प्रमाण मानने लगे हों। बहरहाल मेरे ये विचार उस कड़वे सच का प्रतिबिंब है जिसे मैं खबर का रूप नहीं दे सकता।

यूं तो खुले पन के इस माहाैल की दर्जन भर से अधिक विकृत तस्वीरें देख चुका हूं हाल ही में जो सच सामने आया है उसमें कई चेहरे न केवल अपने परिजनों के विश्वास को बेशर्मी से कत्ल करते नजर आए बल्कि उन्मुक्तता के नाम पर लोक लाज मान मर्यादा की भी धज्जियां उड़ाते दिखे।

बस इतना कहना चाहूंगा प्रेम बुरा नहीं,न ही सुंदर दिखने के लिए श्रृंगार करना गलत् है। आप किस व्यक्ति से कैसे संबध रखते हैं यह भी आपका निजी मामला है बस ख्याल रखे कि मोबाइल गजैटस के इस दौर में आपकी उनमुक्त्ता,आपकी निजीता कहीं आपका वायरल तमाशा न बन जाऐं।जो हो ही रहा है ।बाकी सब जो है वो तो है ही जो नहीं है वह भी हो सकता है इस लिए किसी पर भी अंधा विशवास न करें।

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