BY– संजीव शर्मा
मंगलवार से शुरू हुआ है तो नववर्ष मंगलमय तो हो ही गया। पूरा साल नई उपलब्धियां लाए इसके लिए सरकार को नववर्ष में अथक प्रयास करने होंगे। हिमाचल जैसे कठिन भूगोल और सीमित संसाधनों वाले राज्य में वैसे भी लोगों के पास अन्य सूबों के मुकाबले ज्यादा चुनौतियाँ रहती हैं। पहाड़ी लोग इन चुनौतियों से कदम कदम पर झूझते हैं.
हालाँकि अधिकांश जरूरतों को खुद पूरा करने और इच्छाओं को सीमित करने की संस्कृति उनके रक्त में ही बहती है। लेकिन इसके बावजूद कई ऐसी चीज़ें हैं जिनके लिए जनता को सरकार की मदद की दरकार रहती है। उसी पर फोकस करना होगा। दूसरे राज्यों की तरह हिमाचल में सरकारों के पास भी अपनी परफॉर्मेंस दिखाने के लिए ज्यादा वक्त नहीं रहता।
1985 के बाद के जनादेश साफ़ बताते हैं कि लोग लगातार सरकारें बदलते आये हैं. जाहिर है यह इसीलिए हुआ क्योंकि जिसे चुना गया वो उम्मीदों की कसौटी पर खरा नहीं उतरा. इसलिए दूसरे को मौका मिला।
ऐसे में अगर पिछले चुनाव में बीजेपी के नेताओं ने यह दावे किये थे कि एक ऐसी सरकार चाहिए जो रिपीट हो, लगातार चले, तो अब उन दावों को हकीकत बनाने का समय है। हो गया एक साल, बहुत है सेटल होने के लिए। जो थोड़ी बहुत कमी पेशी थी भी वो जश्न -ए -धर्मशाला में पूरी हो गई . अब और अधिक गति से बढ़ना होगा।
जो केंद्रीय योजनाएं एक साल में आयी हैं उनको पूर्ण करवाने पर बल लगाना होगा ताकि जब चार साल बाद चुनाव में जाएँ तो उपलब्धियों की एक बड़ी लिस्ट हाथों में हो। इस सरकार ने जो सबसे बढ़िया संकेत दिया है वह यही है कि द्वेष की सियासत को नहीं अपनाया है। ऐसे उद्यमों में सिर्फ ऊर्जा जाया होती है और अर्जन कुछ नहीं होता।
रोजगार हो मुख्य प्राथमिकता:
अगर समग्र रूपेण देखा जाए तो अधिकांश समस्याओं की जड़ में बेरोजगारी है। प्रदेश में बेरोजगारों का ग्राफ लगातार ऊपर जा रहा है। ऐसे में सरकार को ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित करना होगा. सरकारी,निजी और स्वरोजगार के उचित अवसर उपलब्ध कराने होंगे। खाली दिमाग शैतान का घर कहा जाता है। पढ़ा लिखा दिमाग खाली होगा तो ज्यादा दिक्क्त होगी।
युवा जब बेकार और बेज़ार होता है तो फिर भ्रमित होने में देर नहीं लगती. नशाखोरी, नशा फरोशी, अपराध इन सबका ग्राफ वहीं ऊंचा होता है जिस समाज या सूबे में बेरोजगार ज्यादा हों। दो वक्त की रोटी कमाने की मजबूरी युवाओं को पथभृष्ट कर देती है। इसलिए इसी पर ज्यादा फोकस हो।
स्वास्थ्य संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण हो:
सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी समाज की प्रमुख जरूरतें हैं। बिना शक हिमाचल देश के उन राज्यों में है जहां शिक्षा और शैक्षणिक संस्थाओं का विस्तार सबसे ज्यादा हुआ है। सड़कें भी आज हर कोने तक पहुँची हैं. लेकिन अभी भी स्वास्थ्य की हालत सही नहीं है।
डाक्टरों से लेकर अधीनस्थ स्टाफ तक की जबरदस्त कमी है। जरा सी बीमारी की हालत में जनता खासकर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को निजी अस्पतालों जाना पड़ता है। और वहाँ की लूट से सरकार भी वाकिफ है। ऐसे में स्वास्थ्य सेक्टर को ज्यादा सुधारने की जरूरत है। अस्पतालों में डाक्टर और दवाओं का इंतज़ाम सही करना होगा।
पर्यटन का पैटर्न बदले:
पर्यटन प्रदेश का प्रमुख उद्योग है। लेकिन अभी तक तो इस सेक्टर में सभी सरकारें फेल रही हैं. अधिकारियों और विभाग ने जमकर पैसा उड़ाया लेकिन धरातल पर कुछ नहीं उत्तर पाया. जबकि फ़िनलैंड और स्विट्ज़रलैंड जैसे राष्ट्रों का उदाहरण हमारे सामने था और नैसर्गिक ख़ूबसूरती उनसे कहीं अधिक. वास्तव में पर्यटन महकमे ने प्रकृति को बेचने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया है।
सब राम भरोसे चल रहा है. कुफरी में घोड़ों की लीद का हल जो अफसर दो दशक में नहीं कर सके वे कितने काबिल हैं कहने की जरूरत नहीं. जयराम सरकार को पर्यटन नीति में आमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत है. अगर ऐसा हो गया तो हिमाचल देश का सबसे समृद्ध सूबा बन जाएगा ।
कृषि-बागवानी को संभालना होगा:
प्रदेश में कृषि का प्रभाव उतना नहीं है जितना बागवानी का है। जो कृषि हो भी रही थी वह अब अपना रुख कैश कृषि की तरफ कर रही है. यह एक अच्छा संकेत तो है लेकिन इसमें सरकार की भागीदारी से ज्यादा किसानों की मेहनत ज्यादा रही है.
उधर वैश्विक ऊष्मीकरण के चलते बागवानी खासकर सेब की खेती जलवायु का जुआ बन गयी है। इन दोनों ही मोर्चों पर नयी तकनीक के साथ काम करना होगा। विकल्प उपलब्ध कराने होंगे।
अधिक से अधिक नकदी फसलें और उनके विपणन के लिए पूरी और पुख्ता चेन स्थापित करनी होगी। चार साल में अगर इन चार क्षेत्रों में ही अधिकतम सुधार हो जाए तो ट्रेन पटरी पर आ जाएगी। वर्ना आज भाजपा कांग्रेस को 45 हज़ार के कर्ज के लिए कोस रही है बाद में कांग्रेस उलटे 75 के लिए कोसेगी और जनता दोनों को।
लेखक पंजाब केशरी टीवी से हैं।