BY-THE FIRE TEAM
भारत विविधताओं का देश है जहाँ एक साथ कई संस्कृतियों को मानने वाले लोग रहते हैं और एकता तथा सौहार्द का सन्देश देते हैं. यहीं सिख़ समुदाय द्वारा मनाया
जाने वाला लोहड़ी उत्तर भारत का एक लोकप्रिय त्योहार है. इसे खास तौर पर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर नई फसल के उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
लोहड़ी की रात खुली जगह पर आग जलाई जाती है. लोग लोकगीत गाते हुए नए धान के लावे के साथ खील, मक्का, गुड़, रेवड़ी, मूंगफली आदि उस आग को अर्पित कर परिक्रमा करते हैं.
In Punjab, the harvest festival Lohri is marked by eating sheaves of roasted corn from the new harvest. It is also traditional to eat "til rice" which is made by mixing jaggery, sesame seeds and rice. #happy #lohri pic.twitter.com/iFBLgzatrX
— Etengy Pvt Ltd (@EtengyLimited) January 13, 2019
लोहड़ी मनाने वाले किसान इस दिन को अपने लिए नए साल की शुरुआत मानते हैं. किसान इस मौके पर फसल की पूजा भी करते हैं. गन्ने की कटाई के बाद उससे बने गुड़ को इस त्योहार में इस्तेमाल किया जाता है.
ये हैं लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं :
लोहड़ी से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं. ऐसे में एक नजर इन मान्यताओं पर:
पंजाब में लोहड़ी का त्योहार दुल्ला भट्टी से जोड़कर मनाया जाता है. मुगल शासक अकबर के समय में दुल्ला भट्टी पंजाब में गरीबों के मददगार माने जाते थे.
उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीरों को बेच दिया जाता था. कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने ऐसी बहुत सी लड़कियों को मुक्त कराया और उनकी फिर शादी कराई.
इस त्योहार के पीछे धार्मिक आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं. लोहड़ी पर आग जलाने को लेकर मान्यता है कि यह आग राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है.
बहुत से लोगों का मानना है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोही के नाम पर पड़ा. पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में इसे लोई भी कहा जाता है.
लोहड़ी को पहले कई जगहों पर लोह भी बोला जाता था. लोह का मतलब होता है लोहा. इसे त्योहार से जोड़ने के पीछे बताया जाता है कि-
फसल कटने के बाद उससे मिले अनाज की रोटियां तवे पर सेकी जाती हैं. तवा लोहे का होता है. इस तरह फसल के उत्सव के रूप में मनाई जाने वाली लोहड़ी का नाम लोहे से पड़ा.
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि लोहड़ी होलिका की बहन थीं. लोहड़ी अच्छी प्रवृत्ति वाली थीं. इसलिए उनकी पूजा होती है और उन्हीं के नाम पर त्योहार मनाया जाता है.
कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी के तौर पर भी जाना जाता था. यह शब्द तिल और रोड़ी यानी गुड़ से मिलकर बना है. बाद में तिलोड़ी को ही लोहड़ी कहा जाने लगा.