BY-THE FIRE TEAM
चालीस साल पहले जब दुनिया में पहला टेस्ट ट्यूब बेबी पैदा हुआ था, तो नि:संतान जोड़ों में आशा की किरण जगी थी. इस तकनीक से लोगों को उम्मीद दिखी थी कि- अब संतान सुख के लिए उन्हें निराश होने की जरुरत नहीं है.
लेकिन, आए दिन कई दंपतियों को बार-बार इन व्रिटो फर्टिलाइजेशन यानी आईवीएफ करवाने के बावजूद विफलता हाथ लगने की शिकायतें रहती हैं.
इसलिए यह जानना काफी जरूरी है कि आखिर इसकी क्या वजहें होती हैं. आईवीएफ एक ऐसी तकनीक है जिसमें किसी दंपति से अंडाणु और
शुक्राणु लेकर उसके बीच निषेचन की क्रिया परखनली में यानी ट्यूब में करवाया जाता है, इसके बाद भ्रूण महिला के गर्भाशय में आरोपित किया जाता है.
नोवा इवी फर्टिलिटी के दिल्ली में लाजपत नगर स्थित क्लिनिक की कंसल्टेंट डॉ. पारुल कटियार बताती हैं कि आईवीएफ की विफलता के कारणों की पहचान कर उसका उपचार करने पर आईवीएफ की सफलता की संभावना ज्यादा रहती है.
डॉ. पारुल ने कहा कि आज कॅरियर संवारने की ख्वाहिश रखने वाले युवा शादी करने या बच्चे पैदा करने में अक्सर देर कर देते हैं, जबकि उम्र बढ़ने से पुरुष और महिलाओं दोनों के साथ संतानोत्पति को लेकर समस्या पैदा होती है.
उन्होंने बताया कि 35 साल के बाद महिलाओं में अंडाणु बनने की क्षमता कम होने लगती है. इसी प्रकार पुरुषों में शुक्राणुओं की गुणवत्ता भी आईवीएफ की सफलता के लिए अहम होती है.
डॉ. पारुल ने कहा कि गर्भाशय की समस्याओं और भ्रूण की गुणवत्ता में कमी के कारण भी आईवीएफ विफल हो जाता है.
उन्होंने कहा, “आज आईवीएफ के पर्सनलाइज्ड प्रोटोकॉल्स की जरूरत बढ़ गई है. इनमें पर्सनलाइज्ड एंब्रायो ट्रांसफा-पीईटी- और पर्सनलाइज्ड ओवेरियन स्टिम्युलेशन प्रमुख हैं.”
विशेषज्ञ ने कहा कि एसिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलोजी(एआरटी) से नि:संतान जोड़ों को विकल्प तलाशने में मदद मिली है.
डॉ. पारुल ने कहा, “ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, मैग्नेटिक एक्टिवेटेड सेल सॉर्टिग्स-एसएसीएस-जैसी तकनीकों और प्री-प्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग-पीजीएस- प्री-प्लांटेशन
जेनेटिक डायग्नोसिस-पीजीडी और एंडोमेट्रियल रिसेप्टिव अरे-ईआरए जैसे रिपड्रक्टिव जेनेटिक्स से आईवीएफ की सफलता की दर काफी बढ़ जाती है.”
डॉ. पारुल ने एक आईवीएफ की सफलता की दरें 25-35 वर्ष की महिलाओं में ज्यादा होती हैं. उन्होंने कहा कि 20-25 वर्ष की उम्र युवतियों में संतानोत्पति के लिए सबसे उपयुक्त होती है.