सुनो सबको प्यार से बस तौबा करो इस सरकार से


BY- ठाकुर सुरिन्द्र सिंह


पुलवामा का आतंकी हमला हो या कोई अतिरिक्त उपलब्धि सबसे अधिक राजनीति अगर कोई कर रहा है तो वह विपक्ष नहीं मगर सबके घरों में सामने दिखने और प्रश्न पूछने वाले ये यक्ष? जी हाँ , टीवी चैनल और ख़रीदे जाते बिके हुये टीवी ऐंकर्स?

गड़करी जी ने दरिया का रूख मोड़कर पाकिस्तान में भुखमरी फैलाने का शिगूफ़ा क्या छोड़ा कि ज़ी न्यूज़ जैसे चैनल ने तो ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगाकर सिद्ध कर दिया है कि पाकिस्तान पानी के प्रवाह न मिलने से स्वाहा होने के कगार पर पहुँचा दिया गया है जबकि ऐसा किसी भी तरह सम्भव नहीं।

रेत के महल बनाने में भी तो समय लगता है? लेकिन केन्द्रीय मन्त्री-मण्डल में भक्ति-युग के प्रवर्तकों की फ़ौज के योद्धा रविशंकर प्रसाद जैसे अपने भावों और भाषा से हल्ला कर ही यह सिद्ध करने पर तुले हैं कि आज़ादी के बाद केवल मात्र एक इसी सरकार ने किया है जो कुछ दिखाई दे रहा है। ऐसा लगना स्वाभाविक भी है क्योंकि ये सब पिछवाड़े से सुख भोगने वाले संसद के वरिष्ठ सदन के परोक्ष चुनाव से उपजे जनप्रतिनिधि हैं जिनके पैर में बिवाइयां नहीं फटीं हैं और पराई पीर की काल्पनिक अभिव्यक्ति के लिये याद किये जाते रहेंगे?

विपक्ष ने बहुत संयम बरता है और फिर शालीनता की मर्यादा नहीं छोड़ी? प्रश्न उठाये जाने वाज़िब हैं मगर इन्हीं प्रश्नों का रूख मोड़ना और अपनी नाकामियों को सेना की प्रतिष्ठा व इमरान के वक्तव्यों से जोड़ना ही ओछी राजनीति है? यह भक्त रविशंकर प्रसाद सिंह के वचनों पर मेरा निजी मानना है। आज के सत्ता पक्ष को मुम्बई हमले में उस समय के गृहमन्त्री का त्यागपत्र भूल जाता है क्योंकि इनके अपने कृत्यों के लिये भी नेहरू जी का चेहरा डराता याद आता है? दायित्व निर्वहन में नाकाम दिखती ये सरकार कब तक गुजरात की सौग़ात पर इठलायेगी कभी तो २००२ की दैवीय फ़ाईल खुलेगी और सच्चाई सामने आयेगी?

प्रधानमन्त्री आज भी मुख्यमन्त्री जितना राज-धर्म नहीं निभा पा रहे? ख़राब मौसम उनकी उड़ान रोक सकता था मगर पुलवामा में इतनी बड़ी चूक हो गयी शायद इसी भय से सूचना तन्त्र ने उन तक सही सूचना देर से पहुँचाने का षड्यन्त्र रचा होगा जो आईटी तकनीक प्रेम और प्रशासनिक अक्षमता का जीता जागता गोधरा है?

सैनिक व अर्द्ध-सैनिक बलों की कर्तव्यनिष्ठा व राष्ट्र-प्रेम पर किसी ने प्रश्न नहीं उठाये बल्कि प्रधान सेवक अपनी कर्तव्य-निष्पादन कला में सफल रहकर असफल दिखे सर्वदलीय बैठक बुलवायी और स्वयं नदारद रहकर गृहमन्त्री से अध्यक्षता करवायी? आख़िर क्यों? वही हाल पार्टी अध्यक्ष का है जो अपनी खड़ी बोली से उकसा-उकसा देश में सामाजिक सौहार्दपूर्ण वातावरण को चुनौती है।

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