BY– रवि भटनागर
पुलवामा के आतंकी हमले और उसके वीभत्स दृश्यों ने प्रत्येक भारतीय को आहत किया है। जनता का आवेश गली मुहल्लों और चौराहों पर देखा जा सकता था। लेकिन सोशल, पेड और गाइडिड मीडिया के ज़रिए जो कुछ भी प्रचारित और प्रसारित होता रहा वो बहुत ही चौंकाने वाला रहा। जहाँ कुछ टिप्पणियाँ तो स्वाभाविक सी ही लगती थीं पर अनेकानेक विचार, विशेष और विभिन्न प्रकार की नफ़रत और आक्रामकता ही ज़ाहिर करते रहे।
ख़ून का बदला ख़ून, पाकिस्तान को नेस्तानाबूद करने व एक धर्म विशेष के प्रति नफरत भरी टिप्पणियां काफी गंभीर रहीं व फारवर्ड भी खूब की जाती रहीं। ऐसा अपने एकाउंट्स को देखने से ही पता चलता रहा। ऐसी टिप्पणियां एक स्पष्ट विचारधारा की ओर इंगित करती हैं। देश भक्ति व शहीदों के प्रति गहरी संवेदना का इस सोच से कोई सरोकार नहीं लगता।
चार पाँच रोज़ पहले एक चर्चा और भी चली थी कि देश में एमर्जेन्सी लगा कर इन सभी समस्यायों से निबटा जाये। बहुत आसान लगता है बिना विचार किये कुछ भी लिख देना। उन्हें अब क्या समझाया जाये कि बीसियों साल से एमर्जेन्सी को भुना कर वोट बटोरने वाले दलों की सरकार से भी वही माँग की जा रही है।
राजनीतिक इच्छा शक्ति चाहिये। धार्मिक भ्रम और नफरत नहीं। अब तक बहुत राजनीति हो चुकी है ऐसे ही आतंकी हमलों पर। जम्मू और काश्मीर के गवर्नर ने स्वयं स्वीकार किया है कि सीक्योरिटी की चूक हुई है। हमें अपने सिस्टम चौकस रख कर ही आतंक को खत्म करना होगा। जाँच में बहुत कुछ नतीजे निकल सकते हैं और निकलेंगे भी ज़रूर। उन पर उपयुक्त कार्यवाही करना भी कारगर होगा।
पक्ष और विपक्ष के नेतृत्व को अपनी भाषा पर पूरा संयम रखना समय की माँग है। उनकी ही अमर्यादित भाषा आम जनता में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करती है। पिछले कुछ वर्षों में धर्म और जातियों में नफरत की हवा अधिक फैली है। पर आतंक केवल भारत की ही नहीं विश्व भर की समस्या है।
हमारे देश में आतंकी साया अधिक इसीलिए है कि हमारी राजनीतिक असमर्थतायें हमारे हाथ बाँधे रहती हैं। सत्तापक्ष अगर अपने रुझानों और पूर्वाग्रहों को ताक पर रख कर गंभीरता से हल तलाशेगा तो हल निकलेंगे भी। ये सरकार को ही खोजने हैं और विपक्ष का समर्थन लेना मुश्किल नहीं होगा। वे भी उतने ही देशभक्त हैं।
ऐसे मुद्दों को अपना हथियार बना कर केवल चुनावी राजनीति करना घातक होगा। इससे नतीजों पर विपरीत असर पड़ सकता है। और आने वाली किसी भी नई सरकार को पैदा की गई दुर्भावनाओं के परिणामों से जूझना आसान नहीं होगा।
लेखक स्वतंत्र विचारक हैं, लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं। लेखक स्वराज इंडिया पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं।