योगी की एनकाउंटर पॉलिटिक्स चुनाव को करेगी प्रभावित


BY- THE FIRE TEAM


पिछले पांच दिन (13, 14, 15, 16, 17 मार्च) आज़मगढ़ में रिहाई मंच के साथियों के साथ 2 अप्रैल को हुए भारत बंद, रासुका और बड़े पैमाने पर हुए एनकाउंटरों के पीड़ितों के साथ गुजरे।

हर जगह एक बात थी की चुनाव से पहले जिला छोड़ने की। सवाल पूछने पर की क्यों पुलिस आई थी ? तो कोई कहता कि फला व्यक्ति ने बोला है। मतलब साफ की चुनाव में उन्हें नहीं शामिल होना है। और जो जेल में वो इससे भयभीत की जेल स्थानांतरण के नाम पर हत्या की साजिश तो नहीं रची जा रही।

गोतस्करी के नाम पर मेरठ में एनकाउंटर, आज़मगढ़ की सरायमीर पुलिस द्वारा अभिषेक यादव को उठाए जाने पर सवाल उठने के बाद असलहे की बिक्री के संबंध में पूछताछ के लिए उठाए जाने की बात तो वहीं आज़मगढ़ जिला जेल में मारपीट के नाम पर एक समुदाय और जाति विशेष के लोगों पर मुकदमें बताते हैं कि ये पॉलिटिक्स चलेगी। और इसलिए कि जिनके खिलाफ ये दमन का अभियान है उन सामाजिक समूहों के राजनीतिक दल बोलने से डरते हैं।

पर उनका न बोलना उनके लिए कितना महंगा पड़ने वाला है उसे इससे समझा जा सकता है कि ये वोट के लिए जान थोड़े देंगे। जीतेंगे तो वो जीतेंगे हम तो जिंदगी से हार जाएंगे। यहां लोकतंत्र से जरूरी उनका परिवार है। हो भी क्यों न वो नहीं रहेंगे तो उनके मां-बाप, बीबी-बच्चों को कौन देखेगा।

हाइवे-मेट्रो, सर्वजनहिताय वादी राजनीतिक लोगों को ये बात गांठ बांधकर रख लेनी चाहिए कि इस सूबे में चुनाव आयोग नहीं बल्कि अपनी सामाजिक हैसियत रखने वाले सामाजिक समूहों की वजह से पिछड़े-दलित बूथ तक पहुँच पाए।

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