BY- सुशील भीमटा
वक्त होते हुए भी वक्त नहीं पास किसी के लाजवाब हुनर रखतें हैं हम बाशिंदे जमीं के। खूब अदाकारी सीख ली जमानें नें जुबाँ से सीरत छुपानें की। हर कोई हंसते हुए चेहरे से नियत पर पर्दा डालकर, झूठी हमदर्दी दिखाकर करीबी बन जाता है और साफ निकल जाता है।
बेवफाइयों को जहम में जगह दे बैठे हम।
खुद को कलाकार बना बैठे हम।
ये गुस्ताखियां लहू का रंग बदल गई।
हमारी मानवता की सोच निगल गई।
यूँ ही बस यूँ ही बे-वजह फरेब की चादर ओढ़कर इंसानियत से जुदा होते चले आये और आज हर रिश्ता,आचरण,व्यवहार,संस्कार परिवार सूली चढ़ गए। अब जमाना बैसाखियों के सहारे चलनें लगा है। तेरी शौहरत के मुकाम से मिली ये बेरुखी ऐ मुसाफिर तुझे पत्थर दिल बनाकर बेदर्द बना गई और तुझे जुबाँ से जादूगर और सीरत से चालसाज बना गई। आज वक्त का पैगाम और तेरी बेरुखी का अंजाम सामनें है तेरे। तू बे-वजह उलझा रहा शौहरत के जाल में और वक्त ने तेरे अपने ही लहू का रंग बदल दिया।
तू छलता रहा शौहरत के लालच में जमानें को तुझे तेरे अपनें ही लहू नें छल्ल दिया। आज अपना ही लहू बहता है कहीं हक्क के लिए, तो कहीं शौहरत के लिए जमानें में खून की निदियाँ बहनें लगी, है।
चल तुझे आईना दिखा दूँ। जरा किसी एक का जिक्र तो कर जो तेरे दुःख दर्द में शुमार है और तेरा तलबगार है ? यहां ख़ंजर पर भी जहर लगाकर कत्ल होतें हैं रिश्ते। बस फर्क इतना है कि कोई जिक्र नही करता! वरना घर जमीन,समाज में ये सरहदें ना होती।
सदियां गुजर चुकी जिक्र तो करता है तू अपनों का मगर दिखा और देख तो सही,आजमां तो सही तेरा अपना कौन है यहां। समाज,परिवार की सरहदें तेरी तन्हाई बयां करती है कि तू बेरुखी का शिकार बनकर टुकडों में बंट गया और जो जमीं पर बीखरे हुए तेरी हस्ती की टूटी बस्ती की सरेआम गवाही देने लगे हैं।
तेरे आशियानों से गरूर की बू आती है। तेरी दहलीज पर बेरुखी साफ नजर आती है।तेरे महलों में संस्कारों व्यवहारों की अर्थी नजर आती है। तेरे इस दौर में धुंआ ही धुंआ है चेहरे साफ नजर आते नही अपने अपनों को भाते नही।
याद रख गैर कभी वफा निभाते नही। वक्त को वक्त दे सच्च से जोड़ नाता गैर कभी भी अर्थी सजाते-उठातें नही। उस आखरी सफर को अपने नाम कर ले,अपने लहू और समाज के रिश्तों की वसीयत अपनें नाम लिख ले।
वफा में शफा है तेरी बेफाई यूँ तन्हा कर गई कि खुशीयों में दिखावा है और गम में छलावा है। सीरत में जलन और गरूर का लावा है फूटता है जब जब नुकसान अपना ही होता और गैरों को तो मजा आता है।
सुशील भीमटा