BY- SHREYAT
डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, मान्यवर श्री कांशीराम स्मारक स्थल और दलित प्रेरणा स्थल नोएडा में लगे हाथी भारत की अभूतपूर्व परंपरा का भाग है।
प्राचीन भारत की बौद्ध परंपरा में हाथी को नाग आदि नाम से भी जाना जाता है। हाथी भगवान बुद्ध के समीप रहने वाले जीवों में से एक है।
हाथी वैभवता का अप्रितम प्रतीक है, इसी को दृष्टिगत रखते हुये सम्राट अशोक ने उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद नामक स्थान एक बुद्ध विहार बनवाया था, जहां पर एक स्तम्भ मिला है जिसके शीर्ष पर हाथी है।
हाथी को सेना में भी सम्मिलित किया जाता था, और हाथियों की संख्या से ही ताकत एवं सैन्य क्षमता का अनुमान लगाया जाता था। चूंकि पालन एवं रखरखाव में अत्यधिक खर्च लगने के कारण सभी के द्वारा इसको अपने राज्य या सेना में रख पाना भी संभव नहीं था।
प्राचीन ऐतिहासिक महत्व की गुफाओं में भी हाथियों की भव्य कलाकृतियाँ एवं मूर्तियाँ मिलती हैं। भारत में स्थल पर मिलने वाला सबसे बड़ा जीव हाथी ही है। हाथी को प्राचीन भारत के लगभग सभी राजाओं ने अपनी शान और शौकत को दिखाने का माध्यम बनाया।
प्राचीन भारत से मध्यकाल की तरफ बढ़ते हुये भी इसकी उपयोगिता और वैभवता बढ़ती ही गयी। आधुनिक युग में हाथियों को कतिपय अब सेना या राज्य का हिस्सा नहीं बनाया गया परंतु आज भी इसको रखने वालों को वैभव से ही जोड़ा जाता है। प्राचीन भारतीय बौद्ध परंपरा को वर्तमान भारत में सहेजे और प्रसारित करने का कार्य आज भी जारी है।
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के शासन के दौरान डॉ. भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, दलित प्रेरणा स्थल और मान्यवर कांशीराम स्मारक स्थल पर हाथी दीर्घा, भारत के इस भव्य ऐतिहासिक महत्व को सहेजने के लिए बनाया गया है।
भारत के सभी राज्यों में बहुजन समाज पार्टी का चुनाव निशान हाथी ही है, केवल असम राज्य में एक क्षेत्रीय दल असम गण परिषद को यह चुनाव निशान आवंटित है। डॉ. अंबेडकर की पार्टी का भी चुनाव निशान हाथी था, जब मान्यवर कांशीराम ने बसपा बनाई, तब यह नारा बहुत लोकप्रिय हुआ “ बाबा का हाथी आया है, कांशीराम ने लाया है।”
भारत के गौरवशाली बौद्ध इतिहास को सही मायने में सम्मान देने और सहेजने का कार्य बहुजन समाज पार्टी और सुश्री मायावती ने किया है। भगवान बुद्ध, महात्मा कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले, बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर, पेरियार, नारायना गुरु, डॉ.राम मनोहर लोहिया के सपनों को साकार रूप देने के लिए समता मूलक समाज की स्थापना, अपने इतिहास को सम्मान देकर ही किया जा सकता है।
श्रेयात
पीएचडी शोध छात्र
म. गां. अ. हि. वि. वि., वर्धा