राजनीति विज्ञान में MA टॉपर: अब मनरेगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर


BYTHE FIRE TEAM


स्कूल हो या कॉलेज या फिर विश्वविद्यालय, गेट के अंदर घुसते ही बड़े-बड़े सपने छात्र- छात्राएं संजोने लगते हैं। लेकिन भारत में जिस प्रकार से बेरोजगारी दर बढ़ रही है उसको देखते हुए कईयों के सपने बस सपने ही रह जाते हैं।

कुछ ऐसा ही हाल कर्नाटक के एक छोटे से इलाके से निकले कुछ छात्रों का है। राजनीति शास्त्र में एमए करने के बाद कर्नाटक के गरुदप्पा एक अच्छी नौकरी कर अपने सपनों को नई उड़ान देना चाहते थे लेकिन जिंदगी ने उन्हें मनरेगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी करने पर मजबूर कर दिया।

द हिन्दू की एक स्टोरी के हिसाब से गरुदप्पा ने राजनीति विज्ञान में MA में टॉप किया था। उन्होंने 2012-13 के अकेडमिक साल में कर्नाटक के विजय नगर कृष्णदेवराय विश्वविद्यालय से अपनी डिग्री ली थी।

2012-13 में बड़े-बड़े सपने संजो रहे गरुदप्पा को शायद तब अंदाजा भी न होगा कि 2019 के चुनाव की सरगर्मी के बीच लू के थपेड़े खाते हुए मनरेगा के तहत काम करना पड़ेगा।

गरुदप्पा को एक 5×5×2 के आकार का गड्ढा खोदने पर 369 रुपये मिलते हैं। कभी-कभी ज्यादा गर्मी होने के कारण वह इस टारगेट को भर नहीं पाते जिससे उनको 369 रुपये नहीं मिल पाते।

गरुदप्पा कर्नाटक के बेल्लारी जिले के रहने वाले हैं और यहां वह अकेले नहीं हैं जो मनरेगा के तहत मजदूरी कर रहे हैं, दर्जनों लोग ऐसे हैं।

सुरेश भी राजनीति विज्ञान में MA करने के बाद थोड़े दिन नौकरी कर पाए। वह 2014-15 में चौथी रैंक लाये थे। लेक्चरर की नौकरी करने के बाद अब वह भी मनरेगा के तहत मजदूरी कर रहे हैं।

चुनाव के बीच ऐसी खबर हमारे राजनेताओं को झगझोर सकती है लेकिन जब वह जाति, धर्म से अलग हटकर कुछ सोचें।


 

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