BY- THE FIRE TEAM
देश का महापर्व कहा जाने वाला लोकसभा चुनाव खत्म हो चुका है, मतगणना कि तारीख़ भी नजदीक ही है। 23 तारीख को देश की जनता को पता चल जाएगा कि अब अगके पांच सालों के लिए देश की बागडोर किसके हाथों में होगी।
इस बार के लोकसभा चुनावों में कई बड़े बदलाव भी देखने को मिलें हैं जैसे बसपा-सपा का गठबंधन जिसने इस बार के चुनाव को और बाकी राजनीतिक पार्टियों को कड़ी चुनौती भी दी उत्तर प्रदेश में।
इसके अलावा इस साल के चुनावी भाषणों में बुनियादी मुद्दे भी नजर नही आये जैसे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।
देश की जनता के मन में क्या है जानने के लिए कुछ लोगों से बातचीत भी की गई।
जनता के विचार
अब जब एक दिन शेष रह गया है, जब भारत देश का हर एक नागरिक देश की बागडोर को एक ऐसे चेहरे के रूप देखना चाह रहा है जो शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक और इन तीनो को एक साथ अनुशाषित और कानूनी ढांचे से परिपक्व रूप में सजोने की काबिलियत रखता हो। अब देश की जनता, वर्तमान भाजपा और पूर्व के कांग्रेस सरकार के कार्य और तौर-तरीको से पहले से ही बखूबी रूबरू है तो ऐसे असमंजस्य की स्थिति में हर कोई, एक ऐसे चेहरे को भारत देश की बागडोर देना चाहता है जो एक सामाजिक और आर्थिक न्याय के मुकम्मल ताल-मेल से वाकिफ़ और माहिर हो।
माननीय बहन मायावती जी के नेतृत्व वाली महागठबंधन वाली सरकार, जो भारत देश के चौथे सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश की एक प्रबल और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख नेता है जिनका राजनीतिक दृष्टिकोण, सामाजिक न्याय और कानूनी प्रक्रिया को सत-प्रतिशत लागू करने के लिए जाना जाता है। एग्जिट पोल एक सम्भावित कल्पना होता है सच नही, भारत देश और इसका हर नागरिक, इस सच्चाई को 23 मई को देखेगा। मैं यह विश्वास के साथ कहना चाहता हूँ कि हमेशा से सामाजिक न्याय से वंचित, बहुजन समाज अब एक नया सवेरा देखने का सपना संजो रहा है, प्रधानमंत्री के रूप में एक नया चेहरा देख रहा है।
– ई० प्रतीक गौतम
छात्र
ज़मीनी हक़ीकत में बीजेपी बुरी तरह हार गई है। बीजेपी सत्ता में आकर बता गई कि सत्ता का दुरुपयोग किस हद तक किया जा सकता है। इतिहास के पन्नों पर बीजेपी ऐसी पार्टी के रूप में दर्ज होगी जिसने सत्ता का भरपूर दुरुपयोग किया।
-शैलेन्द्र कुमार
व्यवसायी
अगर चुनाव आयोग का कोई अफसर BJP से घूस खाकर बैठ गया है। तो यह उस अफसर और बीजेपी की समस्या है। लेकिन हमे तो निष्पक्ष चुनाव चाहिये, वो बिना किसी हेरा – फेरी वाला। अगर बीजेपी EVM से छेडछाड करके चुनाव जीतेगी, तो बैलट पेपर से दोबारा चुनाव होने चाहियें। भारत के राजनीतिक दलों के लिए पिछले कुछ महीने बहुत ही ज्यादा उतार चढ़ाव वाले रहे हैं चुनाव विश्लेषण के हर दौर ने धारणाएं और भविष्यवाणियों को बदल कर रख दिया है, हर चीज को 2019 के चश्मे से ही देखा जा रहा है। अब क्या हुआ ये समझने के बजाए चीजें अगले साल कैसी घटित होंगी नजरें इस पर टिक गई हैं क्या 2019 में भी 2014 जैसा ही हाल होगा और क्या विपक्ष ऐसे जाति के समीकरणों को संतुलित करने में सक्षम हो जाएगा।
–यमुना सिंह
अध्यापिका
भाजपा सरकार ने 5 साल केवल जनता से वादाखिलाफी किया है, और कुछ नही और वर्तमान में जो एग्जिट पोल दिखा रहे हैं इससे चौकाने वाले रिजल्ट आएंगे। लोकसभा के बाद जो सरकार बनने जा रही है गैर भाजपा की सरकार होगी जिसमें उत्तर प्रदेश से सपा बसपा का गठबंधन सरकार की अगुवाई करेगा और इस सरकार से शोषित पीड़ित वंचित समाज का निश्चित तौर पर भला होने वाला है।
– अरबिंद कुमार
कृषक
सरकार ?किसकी सरकार ?ईवीएम ?
यह कुछ सवाल है जो देश में आजकल सुर्खी में चल रहा है,
किसकी सरकार होगी क्या जनता की होगी या पूंजीपतियों की होगी , सवाल लाजमी है जिस तरह से इस दशक में देश में भय का माहौल पैदा हुआ है वह संकेत करता है कि यह चुनाव कई मायनों में बहुत बहुत महत्वपूर्ण है। बात चली है तो ईवीएम का भी जिक्र होना चाहिए जिस तरह से लोगों ने सवाल उठाया इस पर भी सवाल होना चाहिए क्योंकि यह केवल चुनाव नहीं जनता की भागीदारी का भी सवाल है सरकार किसकी होगी किसकी नहीं है तो ईवीएम के खुलने पर ही पता चलेगा पर एक आम आदमी होने के नाते यह होना चाहिए कि सरकार किसी की भी हो पर उसमें गरीब, पिछड़ा, दलित और आदिवासियों की भागीदारी होनी चाहिए।
पर क्या ये पहले भी हुआ हैं। ये भी सवाल है कि आखिर उस सर्वोच्च सत्ता पर एक दलित आखिर क्यों नहीं बैठ सकता हैं जब अमेरिका के लोग एक अश्वेत को अपना नेता चुन सकते हैं तो हम भारतीय एक दलित को क्यों नहीं चुन सकते ?
बाबा साहब ने संविधान की शुरुआत ही, जनता से, जनता के लिए, जनता के द्वारा की बात की है।
–अर्पिता भार्गव
छात्रा
निश्चित तौर पर गठबंधन की सरकार बनने जा रही है और बीजेपी मुक्त भारत होने जा रहा है। ये आँकड़े है जो कि मीडिया प्रायोजित है जिसकी सत्यता संदिग्ध है और ये केवल एनडीए द्वारा अपने सहयोगीयो को जोड़े रहने व विपक्षीयो की एकता में दरार के लिये चलाये जाने वाली कुटनितिक प्रकिया है जिस पर नतीजे आने तक ध्यान नहीं देना चाहिये।
— सुधीर राव
अधिवक्ता
उपरोक्त विचार जनता के हैं जिसमें कोशिश की गई कि सभी वर्गों को सम्मिलित किया जाए जैसे छात्र, अध्यापक, किसान, अधिवक्ता, व्यवसायी
(उपरोक्त विचार जनता के हैं द फायर इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता है)