प्राप्त सूचना के अनुसार ‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ के महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने प्रेस नोट जारी करते हुए कहा है कि-
“समान नागरिक संहिता असंवैधानिक तथा अल्पसंख्यक विरोधी कदम है. हम जानते हैं कि भारत के संविधान में देश के प्रत्येक नागरिक को
उसके धर्म के अनुसार जीवन जीने की अनुमति है जिसे मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा गया, किंतु विगत कुछ दिनों से देश के बहुसंख्यक वर्ग के
नेता लगातार कथित राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर मौलिक अधिकारों को हाईजैक करना चाहते हैं. भारत विविधतावादी देश है जहां अनेक संप्रदायों के
लोग जिनकी अपनी विशेष भाषा, खान-पान, रहन-सहन तथा शैली है, में लगातार हस्तक्षेप करने की कोशिश की जा रही है.
अतीत की घटनाओं को देखें तो अनेक संप्रदायों जिनमें आदिवासी भी शामिल थे, अंग्रेजों की बनाई गई नीतियों का लगातार विरोध करने के लिए अनेक जगहों पर विद्रोह कर दिया था.
शायद यही वजह है कि आजादी के बाद संविधान में उनकी मान्यताओं को स्थापित करने के लिए अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक अधिकार दिए गए हैं,
ताकि सभी अल्पसंख्यक समुदाय अपनी मान्यताओं, मूल्यों को जीवित रख सके तथा उन्हें नियमित तौर पर प्रचारित-प्रसारित भी करें.
इसी क्रम में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि उत्तराखंड हो अथवा उत्तर प्रदेश सहित केंद्र की
भाजपा सरकार समान नागरिक संहिता का राग अलाप रही है जो असामयिक तथा अप्रासंगिक है.
All India Muslim Personal Law Board terms #UniformCivilCode an unconstitutional & anti-minorities step; calls it an attempt by Uttarakhand, UP and Central Govts to divert attention from inflation, economy & rising unemployment. #AIMPLB also appeals to the Govt to not undertake it pic.twitter.com/1rgMrxWeOS
— NewsMobile (@NewsMobileIndia) April 26, 2022
भाजपा सरकार इस तरह के धार्मिक मुद्दों को उछाल कर देश में व्याप्त समस्याओं जैसे बढ़ती हुई महंगाई,
खराब होती अर्थव्यवस्था, अतिशय बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि की तरफ से लोगों का ध्यान भटकाने की फिराक में है.
ऐसे में AIMPLB ने सरकार से अपील किया है कि वह समान नागरिक संहिता के मुद्दे को ना छेड़े.