नेहरु और हमारे कुम्हलाते बच्चे


BY- जगदीश बाली


हर बच्चा कीमती है। एक बच्चा खो जाने का मतलब देश ने एक नागरिक खो दिया।


कहते हैं यदि देश के भविष्य में झांकना हो, तो वहां के बच्चों के चेहरों में गौर से झांकना चाहिए क्योंकि वो चेहरे देश के भविष्य के नेगेटिव फोटो होते हैं। हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ये बात भली भांति जानते थे। वे बच्चों से बहुत प्यार करते थे और इसीलिए चाचा नेहरु कहलाए।

वे बच्चों को ‘बाग की कलियां’ कहते थे जिनका प्यार और सावधानी से भरण-पोषण करना होता है। उनका कहना था – “आज़ के बच्चे कल का भारत बनाएंगे।” हम हर वर्ष इन बातों को दोहराते हुए बड़ी धूम-धाम से बाल दिवस मनाते हैं।

इस दिवस को मनाने के बाद हम सोचते हैं कि हमारे देश के बच्चों के साथ ‘ऑल इज़ वैल’ चल रहा है। परन्तु विडंबना है कि जहां हमारे देश के बच्चों का एक वर्ग खुशहाल जीवन जी रहा है, वहीं दूसरी ओर करोड़ों बच्चे ऐसे हैं जो दर्द, आह और आंसुओं के घेरे में अपना जीवन तलाश रहे हैं।

भूखे पेट चंद चीथड़ों में लिपटे हुए वे किसी गली या फ़ुटपाथ पर नीले गगन के तले जाड़ों की सर्द रातें और पिघलाने वाली गर्मी के दिन बिताने के लिए मज़बूर हैं।

हमारे देश में 20 लाख बच्चे गलियों में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। बचपन की मौज मस्ती और खिलौनों का आनंद उनके नसीब में नहीं। दो रोटी के अलावा उनकी आंखों में कोई सपना पलता ही नहीं।

इसके अलावा हमारे देश के बच्चे अपहरण, हत्या और बलात्कार का शिकार भी हो रहे हैं। बाग की ये नन्हीं कलियां फ़ूल बनते-बनते या तो कुम्लाह जाती हैं या मानव दरिंदे उन्हें मसल देते हैं।

भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो कुपोषण से ग्रस्त हैं और शारीरिक व मानसिक रूप से विकसित नहीं हो पाते। विश्व के एक तिहाई से अधिक कुपोषित बच्चे भारत में हैं।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या 10 लाख से भी ज्यादा है। दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। हालांकि ‘मिड डे मील’ के चलते देश की साक्षरता दर बढ़ी है, परन्तु फ़िर भी बहुत सारे बच्चे या स्कूल नहीं आते या फ़िर स्कूल बीच में ही छोड़ जाते हैं।

स्कूल से बाहर वे सामाजिक उपेक्षा व शोषण के शिकार हो जाते हैं। बड़ी संख्या में बच्चे बाल श्रमिक बन जाते हैं। भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा बाल मजदूर रहते हैं।

यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दुनिया के करीब 12 फीसदी बाल मजदूर रहते हैं। यह एक चिंताजनक आंकड़ा है। वे मानव तस्करी का शिकार हो जाते हैं।

मई 2018 में देश की राजधानी दिल्ली में झाड़खंड की 15 वर्षीय सरिता को बंधुआ बनाकर घरेलू नौकरानी के रूप में रखा गया। जब उसने तनख्वाह मांगी तो उसकी निर्मम हत्या कर दी गई और उसके मृत शरीर के कई टुकड़े कर नाली में फ़ेंक दिया गया।

मालूम नहीं बाल मज़दूरी ऐसे कितने बच्चों का जीवन लील लेती है। मासूम बच्चियों को वैश्यावृत्ति के गर्त में भी ठेल दिया जाता है। गरीबी और भुखमरी की काली स्याही से उनकी नियति में खिलने से पहले ही मुरझाना लिख दिया जाता है। कई बार ये बच्चे गुनाह के रास्ते पर चल पड़ते हैं क्योंकि जब भूख का सवाल खड़ा होता है, तो सिर्फ़ रोटी चाहिए, चाहे जैसे भी हो।

कवि गोपल दास नीरज जी ने कहा है:
भूखे पेटों को देशभक्ति सिखाने वालों
भूख इन्सान को गद्दार बना देती है।

गरीबी, कुपोषण और बाल मज़दूरी के अलावा सवाल बच्चों की सुरक्षा का भी है। आए दिन बच्चों के अपहरण, हत्या व बलात्कार की घटनाएं होती रहती हैं जो सवाल खड़ करती हैं कि हमारे बच्चे कितने सुरक्षित हैं। बच्चे भोले, कोमल, मासूम व निष्पाप होते हैं।

उनकी इसी मनोवृत्ति का फ़ायदा उठा कर कई ज़ालिम मानव दरिंदे उन्हें अपनी दरिंदगी का शिकार बना लेते हैं। यही कारण है कि देश भर में नबालिग बच्चों के अपहरण, बलात्कार व हत्या के मामले बढते जा रहे हैं।

कुछ रोज़ पहले गुरुग्राम में 3-वर्षीय बच्ची का अपहरण कर हत्या कर दी गई। बच्ची का मृत शरीर नग्न अवस्था में मिला। हाल ही में हिमाचल प्रदेश के सोलन में 11 वर्षीय नागेश भी मानव दरिंदगी का शिकार बन गया। जब बच्चे ने खुद को आज़ाद करने की कोशिश की, तो उस दरिंदे ने बेरहमी से गला दबा कर मासूम का कत्ल कर दिया।

2014 में हुई शिमला के चार वर्षीय युग के अपहरण ने हत्या ने सारे देश को दहला कर रख दिया था। उस नन्हीं से जान को भूखे रखा गया, शराब पिलाई गई और फिर पानी की टंकी में डुबो दिया गया। इसी वर्ष पानीपत में 11-वर्षीय नाबालिग से बलात्कार हुआ, फ़िर हत्या और हत्या के बाद मृत शरीर से भी बलात्कार किया गया।

ये मानव विकृति, निर्दयता व दरिंदगी की वो तस्वीर है जो किसी मानव कल्पना से भी परे है। कठुआ में आठ साल की बच्ची से बलात्कार, ज़िंद में 15 वर्षीय बच्ची से बलात्कार, सूरत में 11-वर्षीय बालिका का अपहरण, बलात्कार और फ़िर हत्या। इसी वर्ष हिमाचल में कोट्खाई की 15 वर्षीय गुड़िया को बलात्कार के बाद विभत्स तरीके से मार दिया गया।

इसी वर्ष मुंबई में पांच वर्षीय अंजली का अपहरण कर हत्या कर दी गई। अब न स्कूल, न मंदिर, न मस्ज़िद, न ही चर्च पूरी तरह सुरक्षित हैं। मालूम नहीं कौनसा दरिंदा आड़ लगाए बैठा हो।

जिस देश के बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हों, जहां वे बेलिबास और बेघर हो, जहां वे मानव दरिंदों से सुरक्षित नहीं, जहां वे शिक्षा से वंचित है, वो देश मज़बूत होने का दावा नहीं कर सकता। प्रत्येक बच्चा कीमती है। एक बच्चे के खो जाने का मतलब है देश ने एक नागरिक खो दिया।


लेखक स्वतंत्र विचारक हैं और हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।

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