BY– नरेंद्र चौहान
अगर अब सेब के अवैध पौधों को काटने से पर्यावरण को नुक्सान होता है तो जो वो हजारों अवैध सेब के पौधों को गाजर मूली की तरह काटे वो क्या था😡?
हे न्यायपालिका के कर्णधारों आपको आपके अहम का वास्ता। न्यायपालिका की विश्वसनीयता का ऐसा मजाक मत बनाओ। मन में गालियों का ऐसा गुब्बार उमड रहा है जिससे आपके तुगलकी फरमानों की धज्जियां उड जाएंगी। लेकिन हमें अपने लोकतंत्र से प्रेम है और न्यायपालिका में लोकतंत्र की आत्मा बसती है इसलिए मन मस्तिष्क में उमड़ रहे क्रोध के आवेश को संभाल लेते हैं।
मेरे जो मित्र फेसबुक पर मुझे फॉलो करते हैं उनको याद होगा मैने सिमटते जंगलों व बढते अवैध कब्जों के खिलाफ जमकर लिखा। उसके बाद न्यायपालिका के हस्तक्षेप का खुलकर स्वागत भी किया। लेकिन जब फलों से लदे सेब के पौधों को काटने का फरमान आया उसका विरोध भी किया।
तब मेरे मित्रों ने मुझे अतिक्रमणकारियों का पक्षधर कहते हुए मेरी खूब आलोचना भी की। सेब के अवैध बागीचों को काटने के लिए स्वचालित आरे खरीदे गए, एसआईटी बनाई गई, अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया।
मेरी जैसी सोच वाले लोग दिल पर पत्थर रख कर इस तुगलकी फरमान को महज इसलिए स्वीकारने पर विवश हुए कि यह फैसला न्यायालय की उस देहरी से गुजर कर आया था जिसका सम्मान लोकतंत्र मे विशवास रखने वाले हर नागरिक को करना चाहिए।
लेकिन अब क्या? अब यह कैसा फैसला है, किसका फैसला है? अगर अब वाले मी लार्ड सही हैं तो जिसने सेब के हजारों पौधों को कटवा दिए वो कौन हैं? ये जो कपड़ों के तरह आपके फैसले बदल रहे हैं ये न्यायपालिका के प्रति हमारी विश्वसनीयता का बलात्कार नहीं है?
अगर हां तो आप न केवल न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पंहुचाने के गुनाहगार नहीं हो बल्कि आम जन की भावना के साथ खिलवाड़ करने के दोषी भी हो। हे सम्मानियों न्यायपालिका की विश्वसनीयता व गरिमा बनी रहे इसके लिए भले ही हम पर अपनी हेकडी झाडते रहिए हम आपको मी लार्ड मानते आए हैं मानते रहेंगे।
हाथ जोड़ कर अर्ज कि तुगलकी फरमान जारी करने के बजाय हर पहलू की गहन विवेचना करके ही फ़ैसला आम जन तक पंहुचाएं। हो सकता है कि मेरी यह पोस्ट आपके अहम को ठेस पंहुचाए और कानून की कोई धारा इसे न्यायपालिका की अवमानना के दर्जे में लाती हो। लेकिन सच यह है कि यह गुस्सा न्यायपालिका की गरिमा व विश्वसनीयता से हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ ही है।
लोकतंत्र हमें अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वंत्रता देता है मैंने भी यही किया है। अब मेरे इस लेख को जिसको जिस नजरिए से देखना है देखें।
नोट- उपरोक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं। लेखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।