BY– सुरिन्दर सिंह ठाकुर
सरकारें बनते ही पहल होती है उद्योगपतियों को रिझाने की और मुख्यमन्त्री से लेकर प्रधानमन्त्री तक कटोरा लेकर निकल पड़ते हैं अपने प्रदेश और देश में नयी औद्योगिक क्रान्ति का बिगुल बजाने के लिये?.
जल, जंगल और ज़मीन से लेकर तिजोरियों का आसमान सिर पर ताज की तरह फैला दिया जाता है ? आख़िर क्यों? क्योंकि सभी ने चुनाव लड़ने हैं और महँगे होते चुनावों की नाव पार लगाने वाले सुलभ केवट हैं उद्योगपति, जिन पर कुबेर और लक्ष्मी इतनी मेहरबान रहते हैं जितने रूष्ट धरती-पुत्र के ज़रा से कराह भरे ध्यान से रहते हैं?
इन्कम टैक्स में सीमित अवधि के लिये रिबेट, एक्साइज़ में हेर-फेर अलग छूट के बाद, सस्ती सुलभ बिजली चौबीस घंटे और प्रोजैक्ट रिपोर्ट की लागत पर भी उपदान; ये सब कुछ उन पतियों के लिये हैं जो ‘ उद्योग-पति ‘ हैं जबकि भूमि-पति के लिये अगर कुछ ले देकर कर भी लिया जाये तो विभिन्न गिद्ध दृष्टियों से हड़पने के कई षड्यन्त्र हैं जैसे
‘फ़सल बीमा योजना‘?
हाँ, क़र्ज़माफ़ी किसान के सम्मान से खिलवाड़ है क्योंकि आधारभूत ढाँचे को बदले बिना ये खज़ूर से लटककर बबूल में लटकाना है और कुछ नहीं। किसान को उसकी मेहनत का सम्मान मिले इसी से राष्ट्र विकास पथ पर आगे बढ़ेगा अन्यथा ये Eat Drink And Re Marry not even Be Marry कब तक चलेगा?
प्रश्न सीधे हैं मगर जवाब टेढ़े.
लिखक स्वतंत्र विचारक हैं तथा हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।