BY– सुशील भीमटा
साढ़े चार सालों से आजतक जो हुआ, उसका कोई हल है या ये आवाजें भी छल हैं?
पिछले लोकसभा चुनाव से अब तक भजापा की केन्द्र सरकार के खिलाफ विपक्षी दलों के साथ-साथ देश के आवाम की आवाज भी सरकार की नीतियों और नियत के खिलाफ उठती रही है। कभी नोटबन्दी को लेकर, कभी काले धन को लेकर, कभी नीरव मोदी और मालिया जैसे कई बड़े दिग्गजों के कर्जा माफी व घोटालों को लेकर, तो कभी GST को लेकर, कभी महंगाई को लेकर, कभी किसानों की बदहाली को लेकर।
कभी सुरक्षा व्यवस्था व सुरक्षा विमानों और हथियारों में घोटालों को लेकर, कभी सरहद पर जवानों की जानों से हो रहे खिलवाडों को लेकर, तो कभी नेट बैंकिंग और बैंकों में ट्रांन्जैक्शन पर लगने वाले चार्जेस को लेकर, तो कभी पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों को लेकर और कभी देश प्रमुख के वादों को लेकर तो कभी विदेशी दौरों के बेतहाशा खर्च को लेकर, कभी अपने चहेतों को MOU की आड़ में देश से भगाने को लेकर।
एक बड़ा सवाल, क्या जो विपक्षी दल साढ़े चार सालों से भजापा सरकार को इन मुद्दों को लेकर घेरते आये हैं वो इन मुद्दों को सुलझाने का वादा देश के आवाम से कर सकते हैं या ये सिर्फ चुनावी दाव पेच बनकर ही यथास्थिति बने रहेंगे?
आने वाली सरकार में अगर बदलाव हुआ तो क्या पहले जैसी बेंकिग व्यवस्था,टैक्स, महंगाई, घोटालों, किसानों, जवानों, महंगाई, सुरक्षा व्यवस्था, कालेधन आदि के मुद्दों को सामान्य कर पाएगी?
आज जो कांग्रेस पार्टी इन मुद्दों को जन-जन तक ले जाकर जीत का दावा कर रही है क्या वो देश के आवाम से ये वादा कर सकती है कि देश की वित्तीय, सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था को सामान्य कर पाएगी।
क्या नोटबन्दी के दौरान हुई मौतों का मुआवजा देने का वादा कर सकती है?
क्या बेंकिग प्रणाली को गरीब जनता के लिए सरल बनाने और नेट बैकिंग से छुटकारा दिलवाने का वादा कर सकती है?
जिस देश में एक बहुत बड़ा वर्ग अनपढ़ है और अभी तक सर्वर तक नहीं लगाये गए हैं या प्रॉपर नहीं काम करते क्या वहां नेट बेंकिग अभी संभव है?
देश की आवाम कांग्रेस पार्टी व अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं से ये सवाल पूछ रही है कि जिन मुद्दों को लेकर देश में हाहाकार मचा और मचाया जा रहा है उनका कोई समाधान कर पाएगी?
मैं देश के आवाम से विनम्र निवेदन करना चाहूंगा कि ये सारी गाज हम पर गिरी है और ये सवाल सभी नेताओं से हमें ही करनें होंगे संविधान ने हमें ये हक दिया है। हमें जागना होगा और दूसरों को भी जगाना होगा। वरना हाल वही होगा …आसमान से गिरा खजूर में अटका!
अब हाल ये है कि हर राजनीतिक दल और नेता बेलगाम है, चंद ही हैं जो वतनपरस्त हैं और खामोश कर दिए गए हैं। अब तो यही उम्मीद है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषणा पत्र को कानूनी रूप दिया जाए और सभी जनप्रतिनिधियों व राजननीतिक दलों को 70 से 80% तक घोषणाओं को पूरा करनें के लिए बाध्य किया जाए
वरना क्या सरकार बदलो और क्या घोषणाओं पर विशवास करो? ढांक के वही तीन पात…..जनता फिर खाली हाथ लोकतंत्र को लगेगी लात!
हमें खुद इस लड़ाई को लड़ना होगा और हर नेता को जनता की अदालत में खड़ा करके परखना होगा। आज कतारें लगी हैं, हाहाकार मची है…लूट मची है…लाशें, किसानों, जवानों की बीछी है…लोकतंत्र कहां है?
हमें 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए आज से सजग, जागरूक होना होगा और इन आवाम के मुद्दों के समाधान का वादा लेना होगा उनसे जो देशहित की दुहाई देकर सत्तारूढ़ होना चाहते हैं अब खमोश रहे तो आर्थिक गुलामी तय है। इशारे बैंकों की दुर्दशा और कार्यप्रणाली में आये दिन किए जा रहे बदलाव और अर्जित पटेल का त्यागपत्र दे रहा है।
सम्भलों कहीं देर ना हो जाये!
बिगड़ी हालत को जो सुलझा पाये बस वही सरकार लायें
(लेखक स्वतंत्र विचारक हैं और हिमाचल प्रदेश में रहते हैं।)