किसान बचायें, आओ क्रान्ति की मशाल जलायें


BYसुशील भीमटा


हमारा हिन्दोस्तान एक कृषि प्रधान देश है, यहां किसान को भगवान के बाद दूसरे दर्जे पर स्थान दिया जाता है। और फसल बोआई के समय धरती पूजा की जाती है।

देश की लगभग 70% आबादी खेती बाड़ी करके अपना जीवन यापन करती है इसलिए मैं अपने देश के ‘किसानों का देश पालनहार ‘का दर्जा देता हूँ।

आजकल देश में किसानों की दशा बहुत दयनीय हो गयी है। और देश का ये अन्नदाता प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ सरकार की दमनकारी नीतियों का शिकार होता जा रहा है। तेज वर्षा के साथ ओलों के गिरने से फसलें हमेशा खराब हो जाती हैं और किसान बैंक के कर्जों से तंग आकर आत्महत्याएं करने के लिए मजबूर हो जातें हैं। आज हालत ये हैं कि किसानों को खुदका पेट भरने के लिए अन्न उत्पादन करना मुश्किल पड़ रहा है।

आज भारत के आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि क्षेत्रों में किसान अपनी फसल को तबाह होते देखकर आत्महत्या कर रहा है। सरकार इस घटना की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीँ दे रही है।

सरकार को पीड़ित किसान को आर्थिक सहायता के रूप में फसल – सर्वेक्षण के आधार पर अधिक से अधिक मुआवजा देना चाहिए। जो फसल बीमा योजना सरकार द्वारा चलाई गई है उसका आंशिक लाभ भी गरीब किसानों को नही मिल पाता। रिश्वतख़ोरी चर्म सीमा पर है। सरकार को किसान के ऐसी विकट परिस्थितियों में बिजली बिल और बैंक का ऋण माफ़ करना ही इस अन्नदाता को ज़िंदा रख पायेगा।

हमारी भारत सरकार को किसानों की इस स्थिति पर पर गहन विचार करना होगा क्योंकि किसान ही देश की भरणपोषण करता हैं। किसान ही खाद्यान्न, फल, सब्जियों आदि खाद्य – पदार्थों का उत्पादन करता है और सरकार इन खाद्य – पदार्थों का निर्यात विदेशों को करती है और काफी विदेशी मुद्रा कमाती है एवं आर्थिक कोष में बढ़ोत्तरी करती है।

किसान ही देश की जनता की को भुखमरी से बचातें हैं इसलिए सरकार को किसानों के विकास की अनेक कल्याणकारी योजनाएँ बनानी चाहिए। जैसे – मुफ्त सिंचाई योजना, मुफ्त खाद योजना आदि। सरकार को देश में अनेक कृषि विद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने चाहिए और किसानों को वैज्ञानिक तकनीक से कृषि कराने में मदद करनी चाहिए। कुछ ऐसा प्रावधान भी करना होगा कि इन योजनाओं का सीधा लाभ किसानों को मिल सके।

भारतीय संविधान में भी किसान बचाओ अभियान के लिए कानून का प्रावधान जरूरी किया जाना चाहिए।
भले ही इसके लिए देश की जनता पर ऋण माफी के समय कोई नियमित टैक्स स्थाई ना हो अतः आपदा के समय ही लागू किया जाये।

सरकार और राजनेताओं को चाहिए कि किसानों के मंडियों से फसल के उचित दाम भी मिल पाये और उनकी पेमेंट्स को समय रहते अदा किया जाये।

आनाज मंडियों में व्यापारियों द्वारा समय पर फसलें बेची नहीं जाती जिससे आनाज मंडियों में ही सड़ना शुरू हो जाता है और लाचार किसान खाली हाथ घर लौटकर टूट जाता है और सूली चढ़ जाता है। सबसे ज्यादा किसानों का शोषण अनाज व फल सब्जी की मंडियों के मुनाफाखोरों द्वारा किया जाता है इसपर सरकार को लगाम कसनी होगी।

इसी तरह अगर अन्नदाता आत्महत्याऐं करते रहे तो फिर खेतीबाड़ी कौन करेगा और किस लिए करेगा ?अगर देश का ये पालनहार इसी तरह शोषित होता रहा तो देश की अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत होगी? भारत कैसे विकसित देश बनेगा? ऐसे हजारों प्रश्न उठते हैं। ऐसे प्रश्नों का जवाब सिर्फ और सिर्फ किसानों का विकास और उनको संरक्षण देना है

दो शब्द कहूँगा- —
धरती का ये पुत्र जो बदहाली का शिकार है ..
.जिसके दम पर पलता हमारा परिवार है…!
ये देश के कर्णधारों की अनदेखी की मार है…

ये सिर्फ किसानों की ही नहीं, देशवासियों की भी देश के रखवालों के हाथों हार है!…
चलो वतन वालों एक आवाज उठायें…
सोये कर्णधारों की नींद से जगायें…
संविधान में हो बदलाव ऐसे….
किसान हमारा सुरक्षित हो पाये !

आओ कानून का द्वार खटखटाएँ…
किसान क्रान्ति की मशाल जलायें!
आओ हम इस आवाज को दिल्ली ले जायें…
सर्वोच्च न्यायालय के नाम एक अर्जी लिख जायें..
आओ देश की अनमोल धरोवर, किसान बचायें!

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