मीडिया हमें जो दिखाता है क्या वो सब सच है: निशांत गौतम


BY- THE FIRE TEAM


मीडिया मूल रूप से तो दो तरह की ही है एक प्रिंट मीडिया और दूसरी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, लेकिन आजकल के दौर में सोशल मीडिया का चलन सबसे अधिक है।

सोशल मीडिया पे कोई भी अपनी राय बे-बाकी से रख सकता है, किसी भी तरह का मुद्दा हो उसे उठा सकता है।

जैसा कि आजकल हम सभी देख सकते हैं कि आजकल सब से ज्यादा लोग सोशल मीडिया पे भरोसा करते है।

क्योंकि सब जागरूक हो रहे है जानते है समझते है कि न्यूज़ चैनल पे दिखाई जा रही सभी बातें सच नही हैं।

सोशल मीडिया भी लेकिन भरोसे लायक नहीं है, यहाँ भी उसकी बात को ज्यादा महत्व दिया जाता है जिसके हम पक्षधर है या यूं कहें कि जो हमे पसंद है हम उसकी बड़ाई करते हैं।

मीडिया एक ऐसी चीज है जो किसी को भी आसमान की ऊचाईयों पर पहुँचा सकती है तो उसी को गिरा भी सकती है।

आजकल न्यूज़ चैनल के एंकर किसी विशेष राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता ज्यादा लगते हैं।

कभी भी आप कोई न्यूज़ चैनल लगा के देख लीजिए किसी न किसी मुद्दे पर आपको दो चार पार्टी के प्रवक्ता बहस करते दिख जाएंगे।

ऐसे शो में एंकर सिर्फ नाम के लिए बैठा होगा और एक पार्टी के सपोर्ट में बोलता मिल जाएगा।

न्यूज़ चैनल पे किसी भी खबर को कुछ इस तरह फ्रेम करके दिखाया जाता है कि देखने वालों को यह लगे बस यही सच है।

वो खबर व्यक्ति विशेष की छवि अच्छी करने की भी हो सकती है और खराब करने की भी।

आजकल अधिकतर खबरें सिर्फ और सिर्फ लोगों की बुराई करती नजर आती हैं या तो बड़ाई करती नजर आती हैं।

एंकर तो आजकल ऐसे है कि उनका बस चले तो टीवी सेट से निकल के बाहर आ जाये और जबरदस्ती अपनी बात मनवा ले जनता से।

एक छोटा सा उदाहरण देतें है आप लोगों को जो सबको पहले से पता भी है।

बात नोटबन्दी के दौर की है जब हमारे प्रधानमंत्री मोदी साहब ने नोटबन्दी लागू करी थी उसके बाद 2000 का नया नोट आया मार्केट में।

मुझे तो एक न्यूज चैनल देख के पता चला कि उस 2000 के नोट में GPS चिप लगी है जिससे उस नोट को ट्रैक किया जा सकता है।

मन मे कई तरह के ख्याल आये की क्या सच मे टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो गयी है कि कोई चिप बिना पावर के काम कर सकती है अगर नही तो जरूर कही ना कही उसे चार्ज करने की व्यवस्था दी गयी होगी।

खैर, अब नोट देखा तो नही था इसलिए जब हाथ में आया नोट पहली बार तो मैंने सबसे पहले हर जगह से देखा पर मुझे चिप जैसा कुछ पता नहीं चला।

कुछ दिन बाद खबर आई कि वो सफेद झूठ था। मतलब सिर्फ TRP बढ़ाने के लिए एंकर आजकल कुछ भी खबर चला देते हैं और बेचारी जनता उसे ही सच मान लेती है।

यह हमारी और आपकी जिम्मेदारी बनती है कि जो हम देख रहे हैं उसपे थोड़ा ध्यान दें सोचें समझे कि क्या जो हम देख रहे है सच है, क्या ये सही खबर है या हमे बस युही दिखाई जा रही है।

न्यूज़ चैनल पर डिबेट करने वाले प्रवक्ता जो आपस मे लड़ते दिखाए जाते है पर शो खत्म होने पर एकदूसरे से हंस के मिलके विदा लेते हैं।

बातें तो बहुत सी हैं फिर कभी बता दी जायेगीं फिलहाल एक बात कहना चाहूंगा—

छप के बिकते थे जो अखबार
आजकल बिक के छपा करते हैं..।।।


NISHANT GAUTAM

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