BY- THE FIRE TEAM
बहुत दिनों से, इस गंभीर से विषय को टाल रहा था, यही सोच कर कि, शायद इस पर चर्चा की ज़रूरत ही न पड़े। पर, थोड़ी सी ही बची खुची इंसानियत और बढ़ती उम्र की बेचैनी, रोक नहीं पाई।
कुकुर, यानि कुत्ते को सीधा कुत्ता कहने में भी झिझक होती है। आमतौर पर उसे बच्चे और बूढ़े, किसी न किसी नाम से बुलाना पसंद करते हैं। बहुत से नाम आम चलन में हैं पर किन्हीं पर एतराज़ भी हो सकता है, इसलिए मैं इनको लेकर कोई जोख़िम नहीं उठाउंगा।
मुद्दे की बात यह है कि बफादारी के बेमिसाल नमूने और पवित्र से जीव के चरित्र को इंसान, अपनी सहूलियतों से जी भर कर तोड़ते और मरोड़ते रहे हैं। इस सत्य को मन ही मन विचार करें, और याद करें तो हँसी भी आयेगी। कुछ अन्य विकट विचार भी आ सकते हैं।
बचपन से ही सुना था ‘ कमीने’ से पहले ‘ कुत्ता’ लगाने का रिवाज़। समझदार होते होते, इंसानों पर, इस जानवर के अन्य, बदले हुऐ प्रयोग भी मिले। बड़ा कुत्ता दिमाग, बड़ी कुत्ती शह और बड़ी कुत्ती चीज़, आदि आदि के प्रयोग चलन में रहे। इनके संदर्भों में ही कहीं लंपटता छिपी है और कहीं तारीफ और सुंदरता का बख़ान भी। इसके इस्तेमाल की भूमि, इसका भाव भी तय कर देती है।
इंसानों में, गधत्व सी प्रवृत्ति, कहीं- कहीं ढूंढी जा सकती है। यह एक गंभीर विषय है, पर हैरानी यही सोच कर होती है कि इंसान की अच्छी या बुरी फितरतों में कुकुर प्रवृत्ति का ही आव्वाहन क्यों करना पड़ता है। यह गहन शोध का विषय है, आज नहीं तो कल, इस विषय पर शोध होना तय है, और होना भी चाहिये।
आज के परिवेश में यही ठीक रहेगा कि जो भी इंसान अपनी आदमियत और इंसानियत से भटका या सटका, उसे इसी श्रेणी में डाल देने का प्रावधान हो जाये। ऐसे ही, किन्हीं अद्वितीय पात्रों को विशेष अलंकारों से विभूषित करने के तूफानी, ज़रा ‘हटके से’, प्रयोग किये जा सकते हैं।
अब रही बात कुकुरों के अधिकार क्षेत्र की, तो उसमें दख़ल देते रहने का कभी न पलटने वाला (इर्रिवोकेबल ) माफी नामा दाखिल करना तो बनता ही है। उन्हें अनुबंधित कर लेना भी इंसान की प्रजाति के लिये आवश्यक है। अनेक प्रकार के विभाग, नेता या पशु प्रेमी संस्थान, कभी भी, कहीं भी, आपत्ति उठा कर हमारे धाँसू आइडिये की भ्रूण हत्या करवा सकते हैं।
अनेक पाठक गणों के ज्ञान चक्षु अपने-अपने तजुर्बों की कौड़ियां खेल रहे होंगे। भविष्य में, इस विषय पर और भी बहुत कुछ लिखा और पढ़ा जायेगा, ऐसी संभावना है।
रवि भटनागर