मंत्रालय, बैठकें और चाय- रवि भटनागर


BY- THE FIRE TEAM


कल याने उन्तीस जून 2019 के ही समाचार पत्र की एक ख़बर ने, मन, आत्मा और ज़बान तीनों को ही तृप्त कर दिया। किसी भी सरकार में, मंत्रियों, उनके विभागों के आला अफसरों की, हर मसलों पर बैठकें होती हैं।

समाज और देश के हित में विस्तृत चर्चा कर के फैसले करने में, बैठकों का विशेष महत्व है। जो कुछ, अभी तक नहीं हो पाया, या जो हो भी सका, वह ऐसी ही बेठकों का नतीजा रहा।

पिछले सत्तर सालों से, ऐसी ही बैठकें होती रही हैं जहाँ, शिष्टाचार वश, चाय और विभिन्न बिस्किट का चलन रहा है। गिलास में पानी और हवा के लिये पंखों का स्थान तो बंद बोतलों, एयर कंडीशनरों ने ले लिया। पर और कुछ ज़रा भी नहीं बदला।

बैठकों के क्रिया कलाप तो अंदर की बातें हैं, पर, उन में दी जाने वाली सेवाओं पर तो, सत्तर सालों में किसी का भी दिमाग़ चला ही नहीं।

हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्री जी ने हाल ही में एक फैसले को मंज़ूरी दे दी है, जिसके तहत, बैठकों में बिस्किट का स्थान, चने व मुरमुरे (लाहिया) अखरोट, बादाम, खजूर इत्यादि ले लेंगे।

ख़ास वजह यही है कि, वे चाहते हैं कि, एसी बैठकों में स्वास्थ्य वर्धक सामग्री ही दी जाये। पानी बंद बोतल के स्थान पर काग़ज़ के गिलास व जग में रखा जायेगा।

यह ख़ूबसूरत प्रस्ताव सभी को इतना भा गया है, कि अन्य मंत्रालय भी इसको अपने विभागों में लागू करने के इच्छुक हैं। एसी ख़बर, टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रथम व चौदहवें पृष्ठ पर दी गई है।

देश के स्वास्थ्य मंत्री, पेशे से डॉक्टर रहे हैं, यही कारण है कि उन्होनें, बैठकों के लिये स्वास्थ्य वर्धक विचारों पर विचार कर, ऐसा निर्णय ले लिया। वरना, अगर जोश में काजू भी जुड़ जाते तो मज़ाक ही बन जाता।

जब वह, मंत्रालय और अधिकारियों के बारे में इतना सोच सकते हैं तो देश के लिये भी अवश्य सोचेंगे, पर, ज़रा देर लगेगी, बहुत बड़ा है यह देश।

इस फैसले से, एक बात और भी निकल कर, भेजे में खटक रही है। अगर सभी मंत्रालयों के मंत्री, ऐसे ही शिक्षित व पेशेवर हों तो इतने ही सार्थक फैसले, पहले अपने विभागों के लिये, और फिर, अपने देश के लिये भी ले सकते हैं। शायद एसे ही, सत्तर सालों का दलिद्दर कट जाये। विचार होना चाहिए, कि नहीं होना चाहिए ?

शिक्षा और ज्ञान, चैरिटी बिगिन्स एट होम जैसा ही है। अब फालतू के भाषण और ज्ञान न बाँटें जायें, और सब एक्शन मोड में आ जायें, वरना फिर कौन सा गुंताड़ा खेला जायेगा ? ये जनता है, ये सब नहीं जानती। पर जब जान जाती है तो सड़क पर ही आ जाती है।

यह, ख़बर पर आधारित लेख, लिखा तो पूरी ही गंभीरता से गया है, जो इस लेख को व्यंगात्मक समझें, वे स्वयं ही तय कर लें।


रवि भटनागर गुरुग्राम


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