BY- THE FIRE TEAM
हज़ारों राहुलों में से एक राहुल वह भी हैं जो जन्म से गाँधी भी हैं और वे नेहरू और गाँधी परिवार के एक सदस्य भी हैं।
आज, राहुल 49 वर्ष के हो गये। लोग कहते हैं, कि चाँदी सोने के चम्मचों में गुज़री थी, इनकी ज़िंदगी।
चौदह वर्ष की आयु में ही, एक क़ातिल की गोलियों से छलनी हुये, दादी के शरीर को देख कर धैर्य बाँधें रहना, उन्हीं क़ीमती चम्मचों ने ही सिखाया होगा।
इक्कीस वर्ष की आयु में अपने पिता के टुकड़े-टुकड़े हुये मृत शरीर को दाग़ देने की हिम्मत भी उन्हीं सोने या चांदी के चम्मचों ने ही दी होगी।
हम, इंसानियत की सारी हदें ही पार कर देते हैं, जब किसी से नफरत करना चाहते हैं।
हर खेल के अपने का़यदे कानून होते हैं और राजनीति, एक खेल नहीं, गंभीर विषय है, जिसका सीधा असर जनमानस पर पड़ता है। इसके का़यदे कानूनों की बुनियाद अच्छी होनी बहुत ज़रूरी है।
कई वर्षों से, राजनीति में, काँँग्रेस पर सीधा प्रहार करने के बजाय, नेहरु गाँधी परिवार की साख को मटियामेट कर के, काँँग्रेस को दफ्न कर देने की कोशिशें गरमाई हुई हैं।
1984 के दंगे मैंने भी देखे थे। राजीव जी किन परिस्थितियों में प्रधानमंत्री बने, सब जानते हैं। उनका ही एक बयान, ” कि जब एक बड़ा पेड़ गिरता है ” पर आज तक राजनीति हो रही है।
जो भी हर चुनाव में उस बयान को याद करते हैं, मेरा उनसे सीधा सवाल यही है कि उन दंगो में वे स्वयं कहाँ थे और क्या कर रहे थे ?
सच यही है कि 1984 के दंगे, हिंदू बनाम सिख हो गये थे और देश के अन्य शहरों में भी यही कुछ हुआ था।
कुछ आहत काँंग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी, जोश में ज़्यादतियाँ कीं, तो वह, कानून व्यवस्था का विषय था। हर दंगाई को उपयुक्त सज़ा व पीड़ितों को पर्याप्त राहत मिलनी ही चाहिये थी।
यह,आज भी नहीं हो पा रहा है। कानून अपना कार्य, अनेक कारणों से, सही नहीं कर पाता और इसकी सज़ा हर वर्ग और धर्म के लोग झेलते रहते हैं।
ज़रा, आपात काल में उपजे नेताओं पर भी ग़ौर करें। नेताओं की बाढ़ में कितने ही नेता, रंक से राजा बने, कुछ जायज़ तो कुछ नाजायज़ भी।
वे तो सोने चांदी के चम्मचों का ही व्यापार करने लग गये। उनमें से बहुतों के परिवार ख़ूब फल फूल रहे हैं। सुख सुविधाओं के झूले झूल रहे हैं, और चुनाव-चुनाव भी खेल रहे हैं।
ज़रा याद करें, आज से तीस पैंतीस साल पहले, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और बंगाल का हाल क्या ऐसा ही था ? खै़र, आज ऐसी बातें करने का कोई औचित्य नहीं रहा।
राजनीति में यह भी उचित नहीं है कि अपने राजनीतिक विरोधियों के परिवारों या उनके ही चरित्रों पर नाजायज़ और अकारण टिप्पणियाँ कर उनको समाज की नज़र में गिराया जाये। हमारे सोशल मीडिया के ज़रिए यह काम बख़ूबी किया गया है।
आज राहुल के जन्मदिन पर बधाई देते हुये यही कामना करता हूँ कि वे अपनी सभी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन, निर्भीकता और पूरे हौसले से करें।
यह मान के चलें कि अभी उन्हें और भी मानसिक आघात मिलेंगे। पर जो हिम्मत उन्होनें इन हारे हुये चुनावों में दिखाई थी, वही जज़्बा भविष्य में भी का़यम रखें।
शुभकामनाएं।
रवि भटनागर गुरुग्राम
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