आज़मगढ़ के गंधुवई में हुए पुलिसिया उत्पीड़न पर रिहाई मंच ने जारी की रिपोर्ट, पीड़ितों ने पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप

आज़मगढ़ में निज़ामाबाद थाना क्षेत्र के गंधुवई गांव की नट बस्ती में उस समय कोहराम मच गया जब निज़ामाबाद पुलिस ने मौके पर पहुंचते ही घरों में घुस-घुस कर महिलाओं, बच्चों को घसीटना और पीटना शुरू कर दिया.

5 सितंबर की दोपहर में घटित होने वाली इस घटना के तथ्यों को जानने के लिए रिहाई के एक प्रतिनिधिमंडल ने मंच महासचिव राजीव यादव के नेतृत्व में बंधुवई का दौरा किया.

ग्रामीणों जिनमें अधिकांश महिलाएं थीं, बताया कि पुलिस की लाठी से करीब 35 लोग घायल हुए जिसमें 18 महिलाएं और 10 बच्चे शामिल हैं.

ग्रामवासियों ने बताया कि गांव में दो पक्षों में आपस में झगड़ा हुआ, एक पक्ष ने पुलिस को फोन कर दिया.

जब तक पुलिस मौके पर पहुंचती दोनों पक्ष आपस में पथराव करने लगे. पुलिस ने मौके पर पहुंचते ही पहले पथराव का वीडियो बनाया.

पुलिस को देख कर पथराव बंद हो गया, उसके बाद पुलिस ने अंधाधुंध लाठी भांजना शुरू कर दिया. पुरूष गांव में कम थे और जो थे भी उनमें से कुछ को लाठियां लगीं तो वे गांव छोड़ कर भाग गए.

पुलिसिया तांडव का सबसे अधिक शिकार महिलाएं, और बच्चे हुए. गोरकी की आयु लगभग 30 वर्ष होगी, उसके सिर में पट्टी बंधी थी.

उसने बताया कि- उसके घर में घुसकर पुलिस वाले ने बिना कुछ पूछे सिर पर लाठी मारी जिससे उसका सिर फट गया, उस हालत में भी पुलिस वाले ने उसके सीने पर हाथ डाला.

पीड़िता नाजमा ने बताया कि- “पुलिस वालों ने पहले उसका मुंह दबाया, बदन पर कई लाठियां बरसायीं. फरीदा करीब चार–पांच महीने की गर्भवती है.

उसके ससुर किताबू ने बताया कि झगड़ा किसी और का था इसलिए वे निश्चिंत थे. लेकिन पुलिस वालों ने उसकी तरफ दोड़ लगाई.”

पहले किताबू के पैरों और शरीर पर लाठी मारी उसके बाद फरीदा के पेट पर चोट मारी. किताबू ने बताया कि उसकी बहू को खून आना शुरू हो गया था.

उसे इलाज के लिए प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया था जहां से डाक्टरों ने उसे चिकित्सीय जांच में भेज दिया.

असमां अपने घर की तरफ भागी, अभी वह घर में प्रवेश भी नहीं कर पाई थी कि एक पुलिस वाले ने उसका बाल पकड़ कर घसीट लिया, पिटाई की और गाली देते हुए कि-

“दूसरों से धंधा करवाती हो और हमको देखकर घर में भागती हो.” आरफा, शबाना, परवीना को पैरों और कूल्हें में चोटें आयीं.

जब महिलाओं से पूछा गया कि लाठियां भांजने वाली महिला पुलिस कर्मी थीं तो उन्होंने बताया कि महिला नहीं बल्कि पुरूष पुलिस कर्मियों ने उन्हें लाठियों से पीटा था.

हारिस का कहना था कि उसे पटक कर पैरों से पेट में मारा जिसकी वजह से वह पेशाब नहीं कर पा रहा है. दस साल का हंज़ला खेत की तरफ से आ रहा था,

उसे नहीं लगता था कि पुलिस वाले उसे भी पीट देंगे उसने बताया कि एक पुलिस वाले ने दौड़ा कर पीछे से एक लाठी मारी और वह गिर पड़ा.

पिटाई के बाद पुलिस वाले गांव के कई लोगों को थाने ले गए थे. गांव की महिलाओं और अन्य लोगों ने फरिहा चौराहे पर इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

महिलाओं ने बताया कि पकड़े गए लोगों को तो पुलिस वालों ने छोड़ दिया लेकिन गांव में झगड़े को लेकर पुलिस वालों ने यह कार्रवाई की थी,

जिसकी अब तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई थी, पुलिस ने उसकी प्राथमिकी दर्ज कर ली. उक्त सभी पीड़ितों में से किसी का सम्बंध झगड़ा करने वाले पक्षों से नहीं था.

ग्रामवासियों ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस वाले जाते समय दो बकरियां और कुछ मुर्गियां भी उठा ले गए.

गांव के लोग शिक्षित और जागरूक नहीं हैं. घटना के तीसरे दिन भी न तो घायलों की चिकित्सीय जांच हुई थी और न ही कोई प्राथमिकी दर्ज करवाई गई थी.

6 सदस्यीय रिहाई मंच प्रतिनिधमंडल में महासचिव राजीव यादव के अलावा मसीहुद्दीन संजरी, विनोद यादव, इमरान अहमद, अवधेश यादव, हीरालाल शामिल थे.

(राजीव यादव महासचिव, रिहाई मंच)

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