बांग्लादेशी हिन्दुओं के लिए आंसू बहाने वालों से कुछ सवाल आलेख: मुकुल सरल (part-2)

Chhatisgarh: हालांकि मैं इस बात का तरफदार हूं कि देश-दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी भी व्यक्ति या समुदाय पर अत्याचार हो रहा हो, बर्बरता हो रही हो, टार्गेटेड किलिंग हो रही हो,

तो उसके ख़िलाफ़ दुनिया के सभी अमन पसंद-इंसाफ़ पसंद लोगों को बोलना चाहिए. लेकिन यहां हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ये बांग्लादेश का अंदरूनी मामला है.

इसे उसे संभालने का मौक़ा मिलना चाहिए, क्योंकि अभी तक ऐसी ख़बरें नहीं आईं हैं कि वहां किसी भारतीय नागरिक पर हमला किया गया है.

भारत के हिन्दुत्ववादी सांप्रदायिक तत्व दुनिया के सारे हिन्दुओं से ख़ुद को जोड़कर मेरे इस अंदरूनी या आंतरिक मामले के तर्क को ख़ारिज कर सकते हैं.

लेकिन यहीं उनसे यह सवाल बनता है कि क्या वे चाहते हैं कि भारत के मुसलमानों के मामले में कोई और देश बोले. जब कोई अन्य देश ख़ासकर पाकिस्तान भारत में

अल्पसंख्यकों ख़ासतौर पर मुसलमानों की दशा पर कोई चिंता जताता है, तो हम क्या कहते हैं, यही कि– यह हमारा आंतरिक मामला है और किसी को हमें ज्ञान देने की ज़रूरत नहीं.

दुनिया का रहनुमा बनते हुए अमेरिका ने जब-तब हमें भारत में अल्पसंख्यकों की दशा पर कोई सलाह दी है, चिंता जताई है, तो हमने न केवल उसे नकारा है, बल्कि उसके बरअक्स अमेरिका के अल्पसंख्यकों की स्थिति को उदाहरण दिया है.

सांप्रदायिक हिंसा के बरअक्स रंगभेदी, नस्लभेदी हिंसा का उदाहरण दिया है और कहा है कि तुम तो न ही बोलो. तो यही बात बांग्लादेश के संदर्भ में भी लागू होती है.

यदि अगर हम बांग्लादेशी हिन्दुओं को लेकर बहुत ज़्यादा चिंता जताएंगे तो वे पलट कर भारत में मुसलमानों की दशा पर सवाल करेंगे, क्योंकि हमारे यहां तो भारतीय मुसलमानों को हिन्दुत्ववादी पाकिस्तान परस्त या बांग्लादेशी घुसपैठियां ही कहते हैं.

भाजपा की पूरी राजनीति ही इस पर निर्भर है. इसलिए इस एक फ़र्क़ को बहुत ध्यान से पहचान लीजिए कि इस समय बांग्लादेश में कोई सरकार नहीं है,

तब वहां यह स्थिति है लेकिन हमारे यहां यानी भारत में तो सरकारी नियंत्रण में ऐसी हिंसा आम होती जा रही है. आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के उग्र अभियान के चलते

1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस और उसके बाद के दंगों की तो आपको याद ही होगी और किस तरह यह सब सरकार की शह पर किया गया.

उस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा की ही सरकार थी, जिसने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दिया था कि बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की जाएगी और फिर कैसे उसी के समर्थन से मस्जिद को गिरा दिया गया.

गुजरात दंगे या नरसंहार…! भले ही मोदी जी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन गए हैं, लेकिन 2002 के गुजरात दंगों में उनकी और उनकी राज्य सरकार की क्या भूमिका रही, सभी जानते हैं.

इस आरोप से वे कभी बरी नहीं हो सकते. बहुत पीछे न भी जाएं, पुरानी घटनाओं को याद न भी करें तो 2024 का आम चुनाव तो पूरी तरह मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत पर केंद्रित रहा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से यहां तक कहा गया कि विपक्ष वाले आपकी मां-बहनों का मंगलसूत्र तक छीनकर मुसलमानों & घुसपैठियों को दे देंगे.

यही नहीं, अभी कांवड़ यात्रा के नाम पर यूपी-उत्तराखंड में जो बवाल हुआ और मुसलमानों को जिस तरह निशाने पर लिया गया, वो तो सबको भली-भांति याद ही होगा.

कैसे कांवड़ियों को उपद्रव की पूरी तरह छूट गई, रास्ते आरक्षित कर दिए गए, फूल बरसाए गए जबकि आपने देखा होगा कि इसी मार्च के महीने में ईद से पहले जुमे (शुक्रवार) को

दिल्ली में सड़क पर नमाज़ पढ़ते व्यक्ति को कैसे पुलिसवाला लात मारकर उठा देता है. किसी कांवड़िये के ख़िलाफ़ आप ऐसे व्यवहार की उम्मीद कर सकते हैं.

यहां तो पुलिस पर भी हमले के मौके पर पुलिस कांवड़ियों के सामने बेबस और निरीह नज़र आई. यही नहीं, बाक़ायदा सरकारी फ़रमान जारी करके मुसलमानों की दुकानों यहां तक

की फल के ठेलों तक पर नेम प्लेट लगवाने का क्या उद्देश्य था, इसे तो बताने की ज़रूरत नहीं. इस एक आदेश के जरिये मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की सरकार के स्तर पर कोशिश की गई जिसमें सुप्रीम कोर्ट तक को हस्तक्षेप करना पड़ा.

इससे पहले कभी सीएए के नाम पर, कभी यूसीसी के नाम पर, कभी आर्टिकल 370 के नाम पर…कभी वेज-नॉनवेज के नाम पर, कभी हलाल और झटका के नाम पर,

कभी कोरोना जिहाद, लैंड जिहाद, कभी लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों को लगातार निशाने पर लिया जा रहा है. गाय के नाम पर मॉब लिंचिंग का दौर अभी तक जारी है.

कभी ट्रेन में नाम पूछकर एक जवान द्वारा मुसलमानों को मार दिया गया कभी कुछ और. ये सब क्या है? हम किस मुंह से बांग्लादेशी हिन्दुओं की चिंता करें.

मैं फिर कह रहा हूं कि बांग्लादेश में हिंसा या अराजकता कि यह स्थिति तब है, जब वहां कोई सरकार अस्तित्व में नहीं है. हमारे यहां तो यह सब बाक़ायदा सरकारी संरक्षण में हो रहा है और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की पूरी राजनीति ही मुस्लिम विरोध पर आधारित है.

इसलिए इस फ़र्क़ को समझना बेहद ज़रूरी है. इसके बाद भी मैं यह नहीं कहूंगा कि बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति पर नज़र मत रखिए या वहां अल्पसंख्यकों पर हो रहे किसी भी हमले पर चिंता मत जताइए,

बल्कि मेरा इतना कहना है कि कृपया बांग्लादेशी हिन्दुओं के नाम पर भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने और निशाना बनाने का एक और मौक़ा मत तलाशिए.

{DISCLAIMER: इस आलेख में लेखक के निजी विचार संकलित हैं AGAZ BHARAT NEWS का इससे कोई सरोकार नहीं है.}

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