पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए जिस तरीके से भाजपा और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस सड़कों पर जन प्रदर्शन कर रही है उसको देखते हुए कई तरीके के अटकलें लगाई जा रही हैं.
इसी संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने राजनीतिक दलों के पास व्यक्तिगत हितों को पूरा करने के लिए निश्चित तौर पर अनेक सकारात्मक कारण मौजूद हैं.
किंतु सांप्रदायिकता को खारिज किए बिना साझे मूल्य संप्रदायों के बीच विकसित नहीं किया जा सकता है भाजपा तथा उसकी नीतियों को लेकर अमृत्य सेन कड़ी आलोचना करते रहे हैं.
Amartya Sen urges people of West Bengal to reject communalismhttps://t.co/RBcwKYJtiC pic.twitter.com/ooWlRnfRb1
— Hindustan Times (@htTweets) December 29, 2020
उन्होंने कहा कि-” बंगाल को धर्मनिरपेक्ष और गैर संप्रदायिक रखने के उद्देश्य से काम करना होगा क्योंकि इसके पहले भी बंगाल में सांप्रदायिकता के थपेड़ों को बड़े ही निर्मम तरीके से झेला है.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सेन ने कहा कि- रविंद्र नाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद आदि ने संयुक्त बंगाली संस्कृति की चाहत और पैरवी की वकालत किया.
“Political parties sure have good reasons to pursue individual goals, but rejection of communalism ought to be a shared value without which we shall not be worthy heirs of Tagore and Netaji,” said @AmartyaSen_Econ
@MamataOfficial https://t.co/PhFr0hQgnn via @thewire_in— Rashid Hasan راشد حسن (@rashidhasanuni) December 30, 2020
तथा उनके प्रत्येक कदम में सामाजिक लक्ष्य के रूप में सामुदायिक, सह अस्तित्व तथा एक दूसरे का सम्मान सदैव केंद्र में रहा है किंतु आज और संप्रदायिक तत्वों को उभरने का माहौल से बनता दिख रहा है.
आपको यहां बता दें कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा को बाहरी लोगों की पार्टी बताते हुए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गुरुदेव टैगोर की भूमि धर्मनिरपेक्षता पर कभी भी
नफरत की राजनीति को हावी नहीं होने देने का आह्वान किया. उन्होंने बोलपुर में एक रैली के दौरान विश्व भारती विश्वविद्यालय के कुलपति विद्युत चक्रवर्ती को भाजपा का आदमी बताया.
और कहा कि वह इस कैंपस के भीतर विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देकर विश्वविद्यालय की धरोहर को नुकसान पहुंचा रहे हैं.