BY- THE FIRE TEAM
वाराणसी: मंगलवार को हुए आन्दोलन में नफरत और हिंसा के खिलाफ रोजी-रोटी-रोजगार के लिए ऐपवा नें एक महिला अधिकार मार्च निकाला। सरकार की गरीब विरोधी नीतियों के चलते दमन और उत्पीड़न झेल रहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश की महिलाओं ने ये मार्च कैंट रेलवे स्टेशन से प्रधानमंत्री कार्यालय रविंदपुरी तक निकाला जिसमे उन लोगों ने बुनियादी मुद्दों पे आवाज उठाई। मार्च में शामिल सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं पर प्रशासन ने फर्जी मुकदमे कर दिए हैं।
गौरलतब है कि पहले प्रशासन ने महिलाओं को मार्च निकालने की इजाजत नहीं दी लेकिन महिलाएं अपनी जिद पर अड़ी रहीं। यह मुकदमें मार्च में शामिल प्रो. चौथीराम यादव, लेखक और विचारक वीके सिंह, ऐपवा की राष्ट्र्रीय महासचिव मीना तिवारी, ऐपवा यूपी सचिव कुसुम वर्मा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के मनीष शर्मा पर दर्ज किए गए हैं।
महिलाओं के दबाव में सभा करने की अनुमति देनी पड़ी प्रशासन को:
7 किमी की लंबी दूरी तय करके अपनी मांगों के साथ पीएमओ पहुंची महिलाओं का मांग पत्र अधिकारियों ने लेने से मना कर दिया। बावजूद इसके महिलाएं पुलिस प्रशासन के सामने डटी रहीं और इस बीच अपनी सभा के माध्यम से उन्होंने अपने मुद्दों पर बातचीत करना जारी रखा।
सभा को सम्बोधित करते हुए ऐपवा की राष्ट्रीय महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि केंद्र और उत्तर प्रदेश में बैठी मोदी सरकर महिला सशक्तिकरण के नाम पर सिर्फ खोखले वादे और नारे देने का काम कर रही है और तमाम योजनायें बनाकर महिलाओं को ठग रही है।
उन्होंने कहा कि देश में नफरत और हिंसा फैलाने का इतिहास रचने वाली भाजपा सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसे बुनियादी सवालों पर चुप्पी साध रखी है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के सारे वादों और नारों की अब पोल खुल चुकी है।
इसलिए आज मेहनतकश महिलाएं अपने हक अधिकार के लिए संविधान और महिला विरोधी इस सरकार को चुनौती देने उतरी हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता अभियान पर करोड़ों खर्च करने वाली यह सरकार गांवों में शौचालय के लिए जमीन तक मुहैया नहीं करा पा रही है बल्कि उल्टे फोटोग्राफी करके और सीटी बजाकर उनका यौन उत्पीड़न कर रही है।
अल्पसंख्यकों के हक में लगातार आवाज उठाने वाले रिहाई मंच के महासचिव राजीव यादव ने कहा कि मन्दिर-मन्दिर का राग अलापने वाली सबरीमाला में महिलाओं का प्रवेश कराकर दिखाएं? हकीकत तो यह है कि मन्दिर में प्रवेश करने पर आज भी दलितों की हत्या कर दी जाती है। प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में बीएचयू की लड़कियां जब आधी रात में अपनी आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ रहीं थीं तब उन पर लाठियां भांजी जा रही थी।
साहित्यकार प्रोफेसर चौथीराम यादव ने कहा कि संघ भाजपा के फासीवादी विचार की सबसे पहली मार आधी आबादी पर पड़ रही है। इसलिए फासीवाद को शिकस्त देने में भी महिलाएं ही प्रतिरोध की नई संस्कृति का निर्माण करेंगी और सामाजिक बदलाव की पंक्ति में सबसे आगे खड़ी होंगी। ऐपवा संयोजिका स्मिता बागडे ने कहा कि मोदी-योगी सरकार में दलित-आदिवासी महिलाओं को बड़े पैमाने पर जमीन से बेदखल कर बर्बर तरीके से उनका दमन किया जा रहा है।
डॉ. नूर फातिमा ने कहा कि एक तरफ मोदी सरकार बेटी-बचाओ की बात करती है तो दूसरी तरफ जब इस देश की मेहनतकश बेटियां सुदूर जिलों से अपनी शिकायत पत्र लेकर आती हैं तो प्रधानमंत्री कार्यालय पर ही कोई बात नहीं सुनी जाती। इससे साबित होता है कि मोदी सरकार जुमलों की सरकार है। सभा को आल इंडिया सेक्यूलर फ़ोरम के प्रो. मो. आरिफ, वी. के. सिंह, सुतपा गुप्ता, सुजाता भट्टाचार्या, विभा, विभा वाही, अर्चना, बीएचयू की शोध छात्रा प्रज्ञा पाठक, इंकलाबी नौजवान सभा के राज्य सचिव राकेश सिंह एवं जिला सचिव कमलेश यादव, ऐपवा राज्य इकाई से जीरा भारती,सरोज, हंसा, शान्ति कोल, मुन्नी, कबूतरा, अनीता, मंजू, चन्द्रावती, गैना, रुखसाना, नूर जहाँ विद्या ने भी अपनी बात रखी। संचालन ऐपवा प्रदेश सचिव कुसुम वर्मा ने किया।