{BY-SAEED ALAM KHAN}
व्यक्ति अपने कर्मों से ही समाज का पूजनीय बनता है, यह बात अक्षरस: जननायक कर्पूरी ठाकुर पर सत्य बैठती है.
24 जनवरी, 1924 को कर्पूरी ठाकुर का जन्म पितौनझिया गांव जो अब कर्पूरी गांव के नाम से जाना जाता है, जिला समस्तीपुर बिहार में हुआ था.
कर्पूरी बाबू के 100वीं जन्म जयंती के मौके पर भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला करके प्रशंसनिक कार्य किया है.
बात जब भारतीय राजनीति की हो तो यहां जनता का प्रिय बनने के लिए लोग ना जाने कौन-कौन से हथकंडे अपनाते हैं,
किंतु वे सफल हो जाएं ऐसा पुरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है. बिहार में कर्पूरी ठाकुर का जीवन देखा जाए तो
वह अत्यंत ही सरल, सादगी से भरे तथा ईमानदारी और मृदभाषिता के कारण लोगों ने न केवल पसंद किया बल्कि उन्हें अपने सर आंखों पर भी बैठा कर रखा.
कर्पूरी ठाकुर की शख्सियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दशकों से बिहार की राजनीति की धूरी बने लालू प्रसाद यादव,
नीतीश कुमार तथा रामविलास पासवान जो अब नहीं रहे, इन तीनों के मेंटर कर्पूरी ही थे. इनके समाजवाद के सिद्धांतों ने सियासत और राजनीति के लिए आदर्श बनाया.
उनके ज़माने में न के बराबर संचार सुविधा वाले उसे युग में भी जननायक को बिहार के किसी भी कोने से गरीबों पर हुए जुल्म की जानकारी मिल जाती थी.
यहां तक कि लोगों को उन पर इस कदर भरोसा था कि सरकार और पुलिस को बाद में बताते थे, सबसे पहले घटना की सूचना जननायक को ही दे देते थे.
उनके व्यक्तित्व को देखकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि बिहार की भूमि के वीर सपूत जननायक कर्पूरी ठाकुर ने
देश की स्वतंत्रता से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक एक सर्व समावेशी शासन व्यवस्था बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया, भारत रत्न से उन्हें सम्मानित करने का निर्णय उनके अथक संघर्षों को सच्ची श्रद्धांजलि है.
जबकि बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि महान समाजवादी नेता तथा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को
देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजे जाने का फैसला प्रसन्नता से भरा है. आज ठाकुर जी को दिए जाने वाले सम्मान से खुशी मिली है और जदयू की वर्षों पुरानी मांग भी पूरी हुई है.
दरअसल सामाजिक न्याय के लिए कर्पूरी बाबू का संघर्ष करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव लेकर के आया. आजीवन समाज उत्थान के लिए काम करने वाले कर्पूरी बाबू को शत-शत नमन.
कर्पूरी ठाकुर से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य:
1942 से समाजवादी छात्र राजनीतिक में सक्रिय जिन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन सहित आजादी की लड़ाई के दौरान 26 महीने जेल में बिताए.
स्वतंत्रता के पश्चात गांव के स्कूल में शिक्षक बन कर सेवा देते रहे.