अधूरी रामलीला: विष्णु नागर के व्यंग्य

नई दिल्ली: पाखंड करने में तो आम आदमी पार्टी भी भाजपा से कम नहीं है. दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी मुख्यमंत्री की उस कुर्सी पर नहीं बैठ रही हैं, जिस पर अरविंद केजरीवाल बैठा करते थे,

मगर वह कुर्सी उन्होंने अपनी कुर्सी के पास ही रख छोड़ी है. वह इतनी बार इतने कम समय में केजरीवाल के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन कर चुकी हैं कि ऊब होने लगी है.

वह कहती हैं कि जैसे भरत ने राम के वनवास के दौरान उनकी गद्दी पर खड़ाऊं राज चलाया था, उसी तरह मैं भी चार महीने यह कुर्सी संभाल रही हूं.

भरत ने तो जो भी राज चलाया होगा, अपनी समझ से चलाया होगा क्योंकि तब न तो मोबाइल फोन थे, न टेलीफोन और न हर दिन वन में जाकर राम से सलाह लेना मुमकिन था.

मगर हमारी मुख्यमंत्री तो लगता है अपना दिमाग इस्तेमाल करेंगी नहीं, जबकि वह खासी पढ़ी-लिखी हैं और उन्हें प्रशासनिक अनुभव भी है.

आज ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने राम-राम भजनेवाली इस पार्टी पर दिलचस्प स्टोरी की है. सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का पाठ यह पार्टी करवाती रही है.

केजरीवाल जी सब काम छोड़कर कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर जरूर जाते हैं. तिहाड़ से छूटने के बाद भी वहां गए थे. कल जंतर-मंतर पर आयोजित जनता की अदालत में तिहाड़ जेल में केजरीवाल के गिरफ्तार रहने की तुलना राम के वनवास से की गई थी.

केजरीवाल ने पिछले सप्ताह अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए इसे अग्निपरीक्षा से गुजरना बताया था. मनीष सिसोदिया अपने को राम रूपी केजरीवाल का लक्ष्मण बताया है.

पिछले बजट के समय आतिशी ने अपने 90 मिनट के बजट भाषण में चालीस बार राम और रामराज्य का उल्लेख किया था. लोकसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल रामराज्य में अपनी निष्ठा का प्रदर्शन करते रहे हैं.

दो साल पहले दिल्ली नगर निगम के चुनाव के समय त्यागराज स्टेडियम में राम की प्रतिकृति प्रदर्शित की गई थी. भाजपा से लड़ने की कुल यह इनकी रणनीति है.

दिल्ली दंगों के समय इसने मुसलमानों से दूरी बनाकर रखी थी. तो आम आदमी पार्टी में राम हैं, लक्ष्मण हैं, भरत हैं, मगर सीता और शत्रुघ्न का अभाव है.

इनका इंतजाम भी जल्दी करना चाहिए. सौभाग्य से रावण हैं मगर दुर्भाग्य से विभीषण, मेघनाद आदि नहीं हैं. यह रामलीला अधूरी है.

ऊपर से ये अगल-बगल बाबा साहेब और भगतसिंह की फोटो क्यों लगा रखी है? रामलीला में इनका क्या काम? राम भी चाहिए, भगतसिंह और अंबेडकर भी! वाह क्या कहने!

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