बांग्लादेशी हिन्दुओं के लिए आंसू बहाने वालों से कुछ सवाल आलेख: मुकुल सरल (part-1)

Chhatisgarh: निश्चित ही किसी देश-समाज में किसी भी नागरिक पर हमले की निंदा की जानी चाहिए. अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी तो सबकी ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए.

लेकिन एक जगह के अल्पसंख्यकों का रोना रोकर दूसरी जगह के अल्पसंख्यकों को निशाने पर नहीं लेना चाहिए लेकिन ऐसा ही हो रहा है.

बांग्लादेशी हिन्दुओं पर हमले की सच्ची-झूठी और मिसलीडिंग ख़बरें दिखाकर भारत में तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया और सत्तारूढ़ भाजपा के नेता और कार्यकर्ता और अन्य हिन्दुत्ववादी

जिस तरह का नैरेटिव गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, उसका मकसद साफ़ है- वो है, भारत के मुसलमानों को निशाने पर लेने का एक और मौक़ा तलाश करना.

इस बारे में कुछ तथ्य साफ़ कर लेने चाहिए:

बांग्लादेश में तख़्तापलट या बग़ावत के बाद जिस तरह के हमले हो रहे हैं, वो हिंदू-मुसलमानों सब पर हो रहे हैं. ख़ासतौर से उन लोगों पर जो वहां अवामी लीग से जुड़े रहे.

वो अवामी लीग, जो वहां की सत्तारूढ़ पार्टी थी और जिसकी नेता शेख़ हसीना थीं, जिनके ख़िलाफ़ ये पूरी बग़ावत हुई और जिन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा और भारत में शरण लेनी पड़ी.

अगर केवल हिन्दुओं की बात की जाए, तो वो केवल हिंदू नहीं हैं, बल्कि बांग्लादेशी हिन्दू हैं यानी बांग्लादेश के नागरिक. यहां हमें बांग्लादेश में रह रहे भारतीय नागरिकों और बांग्लादेशी हिन्दुओं में फ़र्क़ करना होगा.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में बताया है कि बांग्लादेश में कुल 19 हज़ार भारतीय हैं, जिनमें से 9 हज़ार छात्र हैं, जो वहां पढ़ने गए हैं.

एस जयशंकर के अनुसार इन छात्रों में से भी ज़्यादातर जुलाई के महीने में भारत लौट आए हैं. इसी के साथ भारत सरकार बांग्लादेश में सभी भारतीयों की सुरक्षा पर पैनी नज़र रख रही है.

यानी साफ़ है कि बांग्लादेश के विप्लव या विद्रोह के दौरान वहां भारतीयों पर हमले नहीं हो रहे, बल्कि वहीं के नागरिक, जिनमें हिंदू, मुसलमान सभी शामिल हैं, उन पर हमले हो रहे हैं.

हालांकि सैद्धांतिक रूप से किसी भी व्यक्ति या नागरिक पर हमले नहीं होने चाहिए लेकिन हमें समझना होगा कि बांग्लादेश एक बड़े परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है.

ऐसे में वहां सत्ता में रही अवामी लीग के प्रति लोगों में कितना गुस्सा है, क्योंकि इसी पार्टी की रहनुमाई या निर्देश पर वहां आंदोलनकारियों पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई, हत्याएं हुईं.

जुलाई से शुरू हुए इस आरक्षण विरोधी आंदोलन, जो बाद में सत्ता विरोधी आंदोलन में बदल गया, में अब तक तीन सौ से ज़्यादा हत्याएं हो चुकी हैं.

इनमें कुछ पुलिसवालों को छोड़कर ज़्यादातार आंदोलनकारी छात्र-नौजवान ही हैं. हज़ारों लोग अभी भी ग़ायब बताए जा रहे हैं. इस दौरान जब वहां कोई सरकार ही नहीं है, कोई क़ानून व्यवस्था ही नहीं है,

तो ऐसे में कट्टरवादी, उपद्रवी और अराजक तत्वों का हावी होना या मौक़े का फ़ायदा उठाना चिंता की तो बात है, लेकिन हैरत की बात नहीं है.

इसलिए समझना होगा कि हिन्दुओं या हिंदू मंदिरों पर हमले इन्हीं कट्टरवादी और अराजकर तत्वों की करतूत है, न कि आम बांग्लादेशी मुसलमान की.

बांग्लादेश से जितनी तस्वीरें और वीडियो हिन्दुओं या हिन्दू मंदिरों पर हमले के आ रहे हैं, उससे ज़्यादा उनकी रक्षा के आ रहे हैं. बांग्लादेशी नागरिक ख़ासकर बहुसंख्यक मुसलमान और आंदोलनकारी

जिन्होंने साफ़ कर दिया है कि उन्होंने एक तानाशाह को तो उखाड़ फेंका है, लेकिन वे नहीं चाहते कि उनकी देश में कोई भी फासिस्ट या कट्टरवादी सरकार या सैन्य तानाशाही आए.

यही लोग बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों ख़ासकर हिन्दुओं की सुरक्षा में डटे हुए दिखाई दे रहे हैं. तमाम तस्वीरें और ख़बरें हैं, जब छात्र-नौजवान और अन्य मुसलमान मंदिरों और हिन्दू घरों की सुरक्षा में दिन-रात पहरा देते दिख रहे हैं.

सार्वजनिक तौर पर अपील जारी की जा रही हैं कि किसी भी अल्पसंख्यक को कोई नुकसान न पहुंचाया जाए और उनकी सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है.

बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने भी बयान जारी कर साफ़ किया है कि हिन्दुओं को टार्गेट करके छिटपुट हमले हुए हैं, बड़े पैमाने पर वहां हिन्दू सुरक्षित हैं.

आंदोलनकारियों के साथ विपक्षी पार्टी बीएनपी और जमात ने भी आश्वस्त किया है कि सभी की सुरक्षा की गारंटी की जाएगी.

{To Be Continued…}

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