Chhatisgarh: सुप्रीम कोर्ट से जमानत पर रिहाई के बाद आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं से अपने पहले संबोधन में ही, अरविंद केजरीवाल ने उन्हें झंझोड़कर रख देने वाला एलान कर दिया.
केजरीवाल ने कहा कि वह दो दिन में मुख्यमंत्री का पद छोड़ देंगे और उसके बाद मुख्यमंत्री का पद तभी स्वीकार करेंगे, जब जनता उनके ईमानदार होने पर अपने अनुमोदन की मोहर लगा देगी.
सुप्रीम कोर्ट ने तो जमानत देकर उनके ईमानदार होने पर कानूनी मोहर लगा दी है लेकिन उन्हें लगता है कि इतना काफी नहीं है. अब वह जनता के सामने अग्निपरीक्षा देंगे और मुख्यमंत्री पद तभी स्वीकार करेंगे, जब जनता उनके ईमानदार होने पर अपने वोट से मोहर लगाएगी.
अपनी इस त्याग मुद्रा का दायरा बढ़ाकर, इसे आम आदमी पार्टी की ही त्याग की मुद्रा बनाते हुए, केजरीवाल ने अपने इस्तीफे के फैसले के एलान में एक पेच और डाल दिया.
उन्होंने एलान किया कि उन्हीं की तरह, व्यापक रूप से सरकार में नंबर-2 माने जाने वाले, उप-मुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री, मनीष सिसोदिया भी इस अग्निपरीक्षा की चुनौती स्वीकार करेेंगे
और जनता के ईमानदार घोषित करने के बाद ही, उप-मुख्यमंत्री तथा शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी संभालेंगे. पुन: इसी प्रसंग को और आगे बढ़ाते हुए, एक और पेच जोड़ते हुए
केजरीवाल ने यह मांग भी पेश कर दी कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव, जो अगली फरवरी में होने हैं, आगे खिसका कर नवंबर में होने वाले महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के साथ करा दिए जाएं, ताकि केजरीवाल की अग्निपरीक्षा जल्दी हो जाए.
कहने की जरूरत नहीं है कि दिल्ली की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा, केजरीवाल की इस गुगली से हतप्रभ रह गयी है. भाजपा के नेता, जो अब तक जेल में रहने के आधार पर केजरीवाल का इस्तीफा मांगते आ रहे थे,
अचानक उनके इस्तीफे का एलान करने से समझ नहीं पा रहे हैं कि इसे अपनी कामयाबी मानें या अपनी परेशानी. यह कहने के सिवा कि केजरीवाल ने पहले ही इस्तीफा क्यों नहीं दिया, वे ज्यादा कुछ कह नहीं पा रहे हैं.
हां! आखिरकार काफी कसरत के बाद उन्होंने यह नयी मांग जरूर निकाली है कि केजरीवाल और सिसोदिया ही नहीं, पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना चाहिए!
बहरहाल, मुख्य विपक्षी पार्टी की प्रतिक्रियाओं से समझना मुश्किल नहीं है कि वह समझ ही नहीं पा रही है कि इस नयी स्थिति से कैसे निपटा जाए.?
(To be continued…)