मैं ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म क्यों नहीं देखना चाहता?

(आलेख : टी नवीन, अनुवाद : संजय पराते)

‘कश्मीर फाइल्स’ से प्रेरित होकर फिल्मों और फिल्म निर्माताओं की एक नई नस्ल उभर रही है. एक सरकार जो ‘गुजरात फाइल्स’, ‘गोडसे फाइल्स’ को छिपाना और बंद करना चाहती है,

वह चाहती है कि ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘केरल स्टोरी’, ‘दिल्ली फाइल्स’ और ‘रजाकार फाइल्स’ जैसी फिल्में सामने आएं.

‘द केरला स्टोरी’ नाम की यह फिल्म 5 मई को रिलीज हुई है. फिल्म सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल अमृतलाल शाह द्वारा निर्देशित है.

फिल्म का टीजर पिछले साल 2 नवंबर को रिलीज हुआ था और ट्रेलर 27 अप्रैल को रिलीज हुआ था. ये दोनों इस बात का संकेत देने के लिए काफी हैं कि फिल्म किस बारे में है.?

‘द केरला स्टोरी’ न देखने के कारण हैं :

  • एजेंडा और प्रचार से संचालित फ़िल्म

अपने पूर्ववर्ती फिल्मों के अनुरूप, यह फिल्म भी एजेंडा और प्रचार से संचालित है. इसका उद्देश्य ‘मुस्लिम’ पुरुषों द्वारा प्रेम के नाम पर

‘निर्दोष हिंदू लड़कियों’ को फंसाने और उन्हें इस्लाम में ‘धर्मांतरित’ करने की साजिश रचने का आख्यान गढ़ना है. यह योगी आदित्यनाथ द्वारा गढ़े गए ‘लव जिहाद’ के विचार को अपनाता है

और यह दिखाने की कोशिश करता है कि अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी कट्टरपंथी नेटवर्क की सहायता से केरल में इस साजिश को किस तरह अंजाम दिया जा रहा है?

‘लव जिहाद’ के विचार के निर्माण के अलावा, केरल को एक ऐसी प्रयोगशाला के रूप में दिखाने का भी लक्ष्य है, जहां ‘इस्लामी कट्टरपंथियों’ को पैदा किया जा रहा है.

  • आधारहीन और तथ्यहीन

टीज़र और ट्रेलर में दावा किया गया है कि केरल की लगभग 32,000 महिलाओं को इस्लाम में धर्मांतरित किया गया है और ISIS की सहायता के लिए यमन और सीरिया में भेजा गया है.

इस संख्या का स्रोत स्पष्ट नहीं है, इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के डॉ. आदिल रशीद का एक पेपर है,

जिसका शीर्षक- ‘व्हाई फ्यूअर इंडियंस हैव जॉइन आईएसआईएस’ (क्यों बहुत ही कम भारतीय आईएसआईएस में भर्ती होते हैं?) है-

इसमें कहा गया है कि दुनिया भर में आईएसआईएस के लगभग 40,000 रंगरूट हैं. भारत से 100 से कम प्रवासी सीरिया और अफगानिस्तान में आईएसआईएस क्षेत्रों के लिए रवाना हुए हैं.

लगभग 155 को आईएसआईएस से संबंधों के कारण गिरफ्तार किया गया है. विश्व भर में ISIS भर्ती की विश्व जनसंख्या समीक्षा के आंकड़ों से पता चलता है कि

आईएसआईएस रंगरूटों में बड़े पैमाने पर इराक, अफगानिस्तान, रूस, ट्यूनीशिया, जॉर्डन, सऊदी अरब, तुर्की, फ्रांस आदि देशों से भर्तियां हुई थी.

सबसे ज्यादा भर्ती मध्य-पूर्व और इसके बाद यूरोपीय संघ के देशों से हुई थी. केरल के विशिष्ट मामले और आईएसआईएस में शामिल होने

वाली केरल की धर्मांतरित महिलाओं को भूल जाईये तो ISIS में जाने वाले भारतीय संख्या में नगण्य थे. अपने समकक्ष ‘कश्मीर फाइल्स’ की तरह,

यह केवल एक आख्यान का प्रचार करने के लिए बिना किसी आंकड़े और स्रोत के संख्याओं को बढ़ाता है, सच्चाई को आसानी से छुपाता है.

केरल अच्छे कारणों से अधिक चर्चा में रहा है.

यह ‘मानव विकास’ के मोर्चे पर अग्रणी राज्य रहा है और एचडीआई मापदंडों पर लगातार शीर्ष पर रहा है.

इसके HDI पैरामीटर कई यूरोपीय देशों के बराबर हैं. विकास के ‘केरल मॉडल’ ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन सहित प्रमुख अर्थशास्त्रियों का ध्यान आकर्षित किया है.

यह 100% साक्षरता प्राप्त करने वाला पहला राज्य था. कोविड के चरम के दौरान, इसने एक उदाहरण प्रस्तुत किया कि कैसे राज्य और नागरिक समाज द्वारा सहयोगात्मक कार्रवाई से घातक महामारी को रोका जा सकता है.?

इसने प्रवासी मुद्दे से निपटने के दौरान एक मानवीय दृष्टिकोण प्रदर्शित किया. कोविड की दूसरी लहर के दौरान जब देश के अन्य हिस्सों में बेतहाशा मौतें हुई,

ऑक्सीजन संयंत्रों के निर्माण की दूरदर्शी कार्रवाई से यहां कई मौतों को रोका गया. सामाजिक सद्भाव के मोर्चे पर, धार्मिक बहुलवाद और सांप्रदायिक सद्भाव केरल के अभिन्न अंग हैं.

इसलिए केरल में मॉब लिंचिंग, साम्प्रदायिक हिंसा और साम्प्रदायिक दंगों की घटनाएं कम ही सुनने को मिलती हैं. यदि सामाजिक समरसता पर कोई सूचकांक विकसित किया जाता है, तो शायद यह शीर्ष में हो सकता है.

इसके बावजूद, यह फिल्म केरल में समाज की सच्चाई को छिपाना चाहती है और इसे इस्लामिक कट्टरपंथी तत्वों द्वारा

इस्लामिक राज्य में बदलने के उद्देश्य से कब्जा करने के मामले के रूप में पेश करने की कोशिश करती है.

  • घातक और विषैला:

यह फिल्म केरल के समाज की कोई सकारात्मक सेवा नहीं करती है. बजाय इसके, यह केरल में धार्मिक घृणा के जहर को फैलाने की कोशिश करती है, जो घातक है.

एक मुसलमान के इर्द-गिर्द झूठी कहानी गढ़कर ऐसा करने की कोशिश की जा रही है, जैसा कि कश्मीर की फाइलों में किया गया था.

इसका उद्देश्य इस आख्यान का निर्माण करना है कि एक मुस्लिम होने का मतलब है-एक कट्टरपंथी होना, धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित करने वाला होना और साजिशकर्ता होना.

जबकि इससे इंकार नहीं है कि सभी धर्मों में कट्टरपंथी तत्व होंगे लेकिन यहां कोशिश यह दिखाने की है कि हर मुसलमान कट्टरपंथी है.

  • दीवारें खड़ी करना और पुलों को हटाना:

फिल्म का इरादा धार्मिक समुदायों के बीच दीवारें खड़ा करना है. ‘कश्मीर फाइल्स’ ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दीवारें खड़ी करके ऐसा ही प्रयास किया है.

उसी को ‘द केरल स्टोरी’ में दोहराया गया है. दूसरी ओर, यह धार्मिक समुदायों को जोड़ने वाले पुलों को खत्म करना चाहता है.

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एक विचारधारा, जो धर्म और जाति जैसी कृत्रिम दीवारों को नष्ट करने में विश्वास नहीं करती है, वे उन दीवारों का निर्माण करना चाहेंगी.

जबकि अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाह के उदाहरण एक अधिक सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में एक आंदोलन हो सकते हैं, हिंदुत्व विचारधारा के लिए यह एक साजिश है.

ऐसे में मैं ‘द केरला स्टोरी’ नहीं देखना चाहता और इसका बहिष्कार करूंगा. ऐसी फिल्में केवल बहुसंख्यक धर्म के सदस्यों को

कट्टरपंथी बनाने के हिंदुत्व के समर्थकों के उद्देश्य को पूरा करती हैं. ‘कश्मीर फाइल्स’ की तरह ही मैं इस फिल्म को खारिज करता हूं.

(countercurrents.org से साभार, टी नवीन स्वतंत्र लेखक हैं)

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