Chhatisgarh: मोदी जी, भागवत जी गलत नहीं कहते हैं. भारत के खिलाफ विश्व स्तर पर षडयंत्र पर षडयंत्र हो रहे हैं. देखा नहीं, कैसे मोदी जी ठीक से हरियाणा की जीत का जश्न मना भी नहीं पाए थे,
तब तक विश्व खाद्य सुरक्षा नापने वाले अपना ताजा विश्व भूख सूचकांक लेकर आ गए, पार्टी का मजा किरकिरा करने और आते ही वही पुराना राग लेकर बैठ गए.
खाद्य सुरक्षा के मामले में मोदी जी के अमृतकाल के बाद भी भारत की हालत गंभीर है. इस साल भारत भूख से परेशान दुनिया के 126 देशों में 105वें नंबर पर है.
बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल वगैरह से भी पीछे। पर बांग्लादेश, श्रीलंका वगैरह की परवाह ही किसे है.? हमारा असली मुकाबला तो पाकिस्तान से और अब अफगानिस्तान से भी है.
यह सचाई तो विश्व भूख सूचकांक वाले भी छुपा नहीं पाए हैं कि भारत में भूख, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से तो कम ही है, बच्चों के न्यून विकास या स्टंटिंग के मामले में जरूर अपना इंडिया नंबर वन पर है.
वैसे बच्चों की लंबाई सामान्य से कम रहने से लेकर, आम तौर पर अल्पपोषण तक, सभी मामलों में दुनिया में भारत का डंका पिट रहा है.
पर नंबर वन का पदक तो हमें सिर्फ बच्चों की स्टंटिंग ने ही दिलाया है. भूख के मामले में तो हम अब भी नंबर वन से पूरे 21 नंबर पीछे हैं.
खैर! मोदी जी की सरकार के रहते हुए, भारत को बदनाम करने के ऐसे षडयंत्र कभी कामयाब नहीं हो सकते हैं. विश्व भूख सूचकांक आया नहीं, सरकार ने उससे पहले ही एलान कर दिया था,
हम एक बार फिर कह रहे हैं कि हमें विदेशियों का यह भूख सूचकांक मंजूर नहीं है और इसलिए नहीं कि इस सूचकांक में भारत को हर बार बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे पिद्दी-पिद्दी से देशों से पीछे दिखा दिया जाता है.
इसलिए कि विदेशियों के पैमाने से जब हमारी संतुष्टि को ही नहीं नापा जा सकता है, तो हमारी भूख को कैसे नापा जाएगा? आखिर भूख क्या है? संतुष्टि का अभाव ही तो भूख है.
जो मन से संतुष्ट है, उसका पेट खुद ब खुद भर जाता है, बाकायदा डकारें तक आने लगती हैं, फिर चाहे कुछ खाने को नहीं भी मिले. पर यह जरा गहरे दर्शन की बात है,
जिसे पश्चिम की पढ़ाई पढ़े नाप-जोख करने वाले, नापना तो छोड़िए, समझ भी नहीं सकते हैं. ऊपर से इन भूख नापने वालों को कन्फ्यूज करने के लिए,
हमारे मंत्री तक दिन में कई-कई घंटे निराहार रह जाते हैं और इस तरह भूखों में खुद को गिना लेते हैं, दुनिया को यह दिखाने के लिए भूखों की यह गिनती कितनी गलत है.
ब्रेक फास्ट और लंच मिस करने वाली सिलेंड्रेला को गिना जाएगा, तो झूठे ही भारत ज्यादा भूखा नजर आएगा! फिर बात एक सिलेंड्रेला की नहीं, यह तो एक मिसाल है.
भारत में योग जीवन शैली का हिस्सा है और योग में, आहार से वियोग समेत तरह-तरह के वियोगों यानी त्याग का बड़ा महत्व है. साधारण जन जब मामूली योग करते हैं, उसमें आहार का मामूली वियोग तो करते ही हैं.
जो वजन घटाने का योग करते हैं, वे तो आहार वियोग का जमकर प्रयोग करते हैं. तो क्या उन सब को भूखों मेें गिन लिया जाएगा? इस तरह भूखों की गिनती बढ़ाकर,
भारत को बदनाम किया जाएगा और वह भी तब जबकि उसकी योग की शिक्षा को आज सारी दुनिया अपना रही है! दुनिया हमारी योग की शिक्षा अपनाएगी, तो दुनिया में आहार वियोग की प्रवृत्ति भी बढ़ती जाएगी.
फिर तो भूख सूचकांक वालों की गिनती हमारे भारत की तरह, बाकी दुनिया भर में भी एक मजाक बन जाएगी. लोग उन पर हंसेंगे-ये भूख, भूख क्या है? भूख सूचकांक वालों, अब तुम अपनी दूकान बढ़ा लो.
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)