वैज्ञानिकों के द्वारा खोजे जा रहे कोरोना टीकों तथा चिकित्सकों के लाख प्रयासों के बाद भी कोरोनावायरस संक्रमित मरीजों की संख्या जिस अनुपात में कम होनी चाहिए थी वह नहीं हो पा रहा है.
प्रत्येक दिन मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है जिसके कारण पूरे देश में भय का माहौल व्याप्त हो चुका है. इसी संदर्भ में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में किए गए सिरो के सर्वेक्षण में
@LambaAlka बच्चों को लेकर एक गंभीर चेतावनी देता #दिल्ली का सीरो सर्वे,इस बार कहीं लापरवाही हुई तो सोच लेना बच्चों के माँ बाप छोड़ने वाले नहीं,समय रहते उचित कार्यवाही हो.कोरोना की तीसरी लहर से पहले जानें दिल्ली के कितने बच्चे हो सकते हैं शिकार? https://t.co/7rBq5MDfjt
— Taste of Politics™ #tasteofpolitics (@TasteofPolitics) May 21, 2021
इस बात का खुलासा हुआ है कि- “अभी करोना की तीसरी लहर आने वाली है जिसमें 60% बच्चे इसकी चपेट में आ सकते हैं.”
स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने बच्चों में कोविड-19 के फैलने का मुख्य कारण परिजनों को माना है बताया गया है कि घर के बड़े लोग जो काम के चक्कर में घर से बाहर निकलते हैं और वहीं से संक्रमित होकर जो अपने परिवार में पहुंचते हैं तो इनके संपर्क में आने के कारण बच्चे भी संक्रमित हो जाते हैं.
इसके अतिरिक्त बच्चों के लिए टीकाकरण का प्रबंधन तथा बच्चों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग का ना होना भी इनके संक्रमण होने का बड़ा कारण होता है.
इस विषय में दिल्ली मेडिकल काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ अजय गंभीर ने बताया है कि कोरोनावायरस लगातार अपना रूप बदल रहा है.
#सीरो_सर्वे की रिपोर्ट और दिल्ली HC की चेतावनी के बाद भी केजरीवाल सरकार कोर्ट में संतुष्टी भरा जबाव नहीं दे पा रही?
कोर्ट ने कहा हम पीछा नहीं छोड़ने वाले.#दिल्ली हाईकोर्ट ने किया सचेत : कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी को सरकार न लें हल्के में.#SaveDelhi https://t.co/7m3SLcG3Up— Alka Lamba 🇮🇳 (@LambaAlka) May 21, 2021
ऐसे में हमें भी बड़ों के अतिरिक्त बच्चों के लिए भी वैक्सीन के आधार को भी बदलना होगा हालांकि बच्चों में रोग प्रति रोधक क्षमता अधिक पाई जाती है.
बावजूद इसके यदि हम बच्चों को कोरोनावायरस से तीसरी लहर से सुरक्षा नहीं दे पाए तो हमें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं.
डॉक्टरों का ऐसा भी कहना है कि जो बच्चे कोरोना पाज़िटिव होते हैं उनमें 90 से 95% बच्चों में रोग के बहुत ही सामान्य लक्षण पाए जाते हैं, यही वजह है कि बच्चों के लिए रेमडेविर अथवा अन्य गंभीर दवाइयों की जरूरत बहुत अधिक नहीं पड़ती है.