मिली जानकारी के मुताबिक इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा जिनका इलाज काफी दिनों से चल रहा था, आज रात 3.30 पर देहरादून स्थित अस्पताल में निधन हो गया.
इसकी सूचना उनकी पुत्री आशु वर्मा ने साझा किया, वर्मा जी के निधन का समाचार सुनकर सोशल मीडिया पर उनके चाहने वालों ने श्रद्धांजलि देना प्रारंभ कर दिया.
हम विद्यार्थियों को जीवन जीने की कला सिखाने वाले लोकप्रिय जन इतिहासकार प्रो. लाल बहादुर वर्मा का देहरादून में कोविड के चलते निधन. न सिर्फ़ ‘इतिहास बोध’ पत्रिका के सम्पादक थे बल्कि इतिहास बोध पैदा करते थे. दर्जनों बैठकें, यादें…@UoA_Official @sahityaakademi @RajkamalBooks pic.twitter.com/uMPEEiHwxb
— ravikant (@ravikantabp) May 17, 2021
वरिष्ठ लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा ने कहा है कि- “नहीं रहे सुप्रसिद्ध इतिहासकार, एक्टिविस्ट और जनचेतना के पुरोधा प्रोफेशर लाल बहादुर वर्मा. वह भले ही देहरादून में रह रहे थे किन्तु उनकी कर्मभूमि गोरखपुर थी.”
जब हम विश्वविद्यालय में थे तो वह प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष थे. इस विषय में वकील और समाजसेवी अरविंद गिरी कहते हैं कि-
“इतिहास को सरल शब्दों में लिखने, उसे सुलभ बनाने तथा इतिहास को कल्पना पर नहीं बल्कि शोध और छानबीन करके प्रस्तुत करने वाले इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा हमसे दूर हो गए.”
विचारशील और संघर्ष में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए लाल बहादुर वर्मा जी का जाना एक युग का अंत है. ऐसा कथन सामाजिक कार्यकर्ता कमलापंत ने उन्हें याद करते हुए कहा है.
वास्तविकता यह है कि वर्मा का निधन सभी देशभक्त और जन पक्षधर लोगों के लिए एक अपूरणीय क्षति है जिसकी भरपाई करना बहुत दुष्कर है.