पहली आदिवासी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने कैसे तय किया झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक का सफर?

झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक का सफर कितना संघर्ष भरा होगा यह बताने की जरूरत नहीं है. जी हां, भारत को 15वीं राष्ट्रपति के रूप में देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के रूप में मिली हैं.

यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के अरबों लोगों के लिए एक मिसाल है. द्रोपदी का जन्म उड़ीसा के मयूरभंज जिले के उसी गांव में 20 जून, 1958 को संथाली आदिवासी समुदाय में हुआ था.

इनके पिता का नाम बिरंचि नारायण था. इनका विवाह श्यामाचरण मुर्मू से हुआ तथा इन्हें दो बेटे और दो बेटी हुई. वर्ष 1984 में एक बेटी की मौत हो गई.

ऐसा बताया जाता है कि मुर्मू का बचपन बेहद अभाव और गरीबी में बीता था किंतु इन्होंने कभी भी हार नहीं मानी और सदैव अपने संघर्ष को विपरीत परिस्थितियों में भी जारी रखा.

भुवनेश्वर के रमा देवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद यह शिक्षक हो गई. 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्यरत रहीं.

तत्पश्चात 1994 से 1997 तक इन्होंने असिस्टेंट टीचर के रूप में भी कार्य किया था. अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करते हुए 1997 में पहली बार उड़ीसा के राइरांगपुर जिले से पार्षद चुनी गईं.

उसके बाद जिला परिषद की उपाध्यक्ष भी बनीं एवं वर्ष 2000 में विधानसभा चुनाव लड़ा तथा राइरांगपुर विधानसभा से विधायक भी बन गईं.

बीजद और भाजपा गठबंधन वाली सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्य मंत्री भी इन्हें बनाया गया. 2002 में मुर्मू को उड़ीसा सरकार में मत्स्य और पशुपालन विभाग राज्य मंत्री बनाया गया

जबकि 2006 में भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई. 2009 में राइरांगपुर विधानसभा से दूसरी बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद लोकसभा चुनाव में भी जीत हासिल किया.

2015 में झारखंड का राज्यपाल बन कर 2021 तक अपनी सेवाएं देती रहीं. राष्ट्रपति के चुनाव जीतने के साथ हुई वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बन गई हैं.

इसके अलावा देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने का खिताब भी अपने नाम कर लिया है. देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल हैं.

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