BY-THE FIRE TEAM
कहने को तो आज हम 21 वीं सदी में पहुँच गए हैं, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में काफी उन्नति कर चुके हैं. किन्तु हमारी सोच और कार्यप्रणाली अपनी पुरातन और कट्टरपंथी दायरे से बाहर नहीं आ सकी है.
इसका ताजा उदाहरण है- महिलाओं के प्रति नकारात्मक धारणाएं. आम तौर पर यह रिवाज है कि पुरुषों का ख़तना किया जाता है लेकिन दुनिया के कई देशों में महिलाओँ को भी इस दर्दनाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है.
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक, “एफ़जीएम की प्रक्रिया में लड़की के जननांग के बाहरी हिस्से को काट दिया जाता है या इसकी बाहरी त्वचा निकाल दी जाती है.”
Circumcision of male children under the age of 16 is prohibited, except when circumcision is performed for religious purposes in accordance with the practices of the religion concerned and in the manner prescribed. pic.twitter.com/nXMiPZKw4L
— MYBURGH ATTORNEYS (@MYBURGHInc) February 6, 2019
यूएन इसे ‘मानवाधिकारों का उल्लंघन’ मानता है. दिसंबर 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें एफ़जीएम को दुनिया भर से ख़त्म करने का संकल्प लिया गया था.
महिला खतना के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसे रोकने के मकसद से यूएन ने साल की 6 फ़रवरी की तारीख़ को ‘इंटरनेशनल डे ऑफ़ ज़ीरो टॉलरेंस फ़ॉर एफ़जीएम’ घोषित किया है.
Female genital mutilation (FGM) involves intentionally removing, altering or injuring the external female genitalia for non-medical reasons. Carried out on girls as young as babies, it carries a sentence of up to 14 yrs. Today is zero tolerance day #EndFGM Suspect it? Report it. pic.twitter.com/H2LQpIL8ln
— Lincolnshire Police (@LincsPolice) February 6, 2019
लड़कियों का खतना किशोरावस्था से पहले यानी छह-सात साल की छोटी उम्र में ही करा दिया जाता है. इसके कई तरीके हैं. जैसे क्लिटरिस के बाहरी हिस्से में कट लगाना,
या इसके बाहरी हिस्से की त्वचा निकाल देना. खतना से पहले एनीस्थीसिया भी नहीं दिया जाता. बच्चियां पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से चीखती हैं.
पारंपरिक तौर पर इसके लिए ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल करते हैं और खतना के बाद हल्दी, गर्म पानी और छोटे-मोटे मरहम लगाकर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है.
बोहरा मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखने वाली इंसिया दरीवाला के मुताबिक ‘क्लिटरिस’ को बोहरा समाज में ‘हराम की बोटी’ कहा जाता है.
बोहरा मुस्लिम मानते हैं कि इसकी मौजूदगी से लड़की की यौन इच्छा बढ़ती है.