‘पड़ोसी दुश्मन ही सही पर कुछ मामलों में हम जैसा है’: एक ब्लॉग


BY-THE FIRE TEAM


मुझे आज तक समझ नहीं आया कि जितने भी धर्म आधारित गुट और सियासी संस्थाएं हैं उन्हें एक दूसरे का दुश्मन होने के बावजूद एक ही विचारधारा के चश्मे से पानी पीने में कोई आपत्ति क्यों नहीं?

मसलन, लिबरल और सेक्युलर सोच हिंदू उग्रवादियों के नज़दीक भी देशद्रोह के बराबर है और मुसलमान अतिवादी भी उन्हें गद्दार और धर्म का दुश्मन समझकर नफ़रत करते हैं.

सेक्युलर तालीम हिंदु और मुसलमान उग्रवादी बड़े शौक से हासिल करते हैं. एक से एक नया गैजेट, गाड़ी, सॉफ़्टवेयर इस्तेमाल करने में उन्हें किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं.

मुबंई हमले के कथित मास्टरमाइंड हाफ़िज़ सईदREUTERS

कोई उग्रवादी मोबाइल फ़ोन का नया मॉडल लेने से कभी मना नहीं करेगा. मगर नई सोच को अपनाना छोड़ उसे सुनने से भी इनकार करके उल्टा आपके मुंह पर हाथ रख देगा.

पश्चिम में रेनेसां पीरियड में जहां और चीजें आईं, वहीं वैज्ञानिक सोच और शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए यूनिवर्सिटीज़ भी तेज़ी से खुलनी शुरू हुईं

रफ़्ता-रफ़्ता यूनिवर्सिटी ऐसी जगह कहलाने लगीं जहां नई सोच की कोपलें फूटती हैं. कोई भी विद्यार्थी या गुरू किसी भी विषय पर कोई भी सवाल उठा सकता है और जवाब चाटे, थप्पड़ या गाली से नहीं बल्कि दलील से देना पड़ता है.

संगठन

GETTY IMAGE

मगर दुनिया लगता है कि उसी ज़माने की ओर धकेली जा रही है जिससे जान बचाकर भागी थी. फ़ासिज़्म राजनीति को लपेट में लेने के बाद अब यूनिवर्सिटिज़ से भी ऑक्सिजन ख़त्म कर रहा है.

रफ़्ता-रफ़्ता यूनिवर्सिटी को भी धार्मिक मदरसों में ढालने की कोशिश हो रही है और सवाल पूछना जुर्म बन रहा है.

पाकिस्तान में आपको याद होगा कि किसी तरह एक सेक्युलर नेता ख़ान अब्दुर वली ख़ान के नाम पर बनी यूनिवर्सिटी में पिछले वर्ष एक छात्र मिशाल ख़ान को उन्हीं के साथी लड़कों ने तौहीन-ए-रिसालत का झूठा इल्ज़ाम लगाकर मार डाला.

उनके कत्ल की जुर्म में सिर्फ पांच लोग इस वक़्त जेल में हैं. बाकी छूट गए.

डॉक्टर मुबारक अली पाकिस्तान के जाने माने इतिहासकार हैं मगर कोई भी विश्वविद्यालय उन्हें पढ़ाने का काम देते हुए डरती हैं. डॉक्टर परवेज़ हूद भाई को धार्मिक गुट शक की नज़र से देखते हैं.

पाकिस्तान.EPA/PIYAL ADHIKARY

सरकारी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले ज़्यादातर प्रोफ़ेसर न सवाल करने की इजाज़त देते हैं. न हर सवाल का जवाब खुलकर समझाते हैं.

जो भी कोर्स है उसे बड़े तोते, छोटे तोतों को पढ़ा रहे हैं.

रामचंद्र गुहाGETTY IMAGES

ऐसे में जब सीमापार से ये ख़बर आती है कि प्रोफे़सर रामचंद्र गुहा जैसे जाने माने इतिहासकार ने धमकियां मिलने पर अहमदाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ाने से इनक़ार कर दिया है या दिल्ली यूनिवर्सिटी में पोस्ट ग्रेजुएट क्लासों में से प्रोफेसर कांचा इलैया की पुस्तकें हटा दी गई हैं.

या किसी यूनिवर्सिटी में अब कोई सेमिनार या वर्कशॉप ऐसा नहीं हो सकता कि जिससे सरकार की नाराज़गी का ख़तरा हो तो मुझे बड़ा आनंद मिलता है.

ये सोच सोच कि हम अकेले नहीं हैं. पड़ोसी दुश्मन ही सही पर, उसकी दुसराहट इतनी बुरी भी नहीं.

 

 

Leave a Comment

Translate »
error: Content is protected !!