इंसान को इंसान होने का एहसास कराने के उद्देश्य से समाज के कुशल चितेरे बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान पर आज हमें गर्व है.
कितना इत्तेफाक है कि इसी देश में रहने वाले लोगों के बीच जाति, वर्ग, नस्ल, लिंग संप्रदाय के आधार पर इस कदर विभाजन करके शासन चलाया जा रहा था कि उनके दंड विधान तथा न्यायिक प्रणाली को देख कर दिल भर आता था.
खैर आज हम उन जुल्मी विधानों से बाहर निकलकर खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं तो इसका श्रेय बाबा साहब को जाता है जिनके संविधान को हम निम्नलिखित आलोक में देख सकते हैं.
मैं भारत का संविधान हूं, तुम्हारे हर तकलीफों का एक मुकम्मल जवाब हूं मैं, कभी वक्त मिले तो मुझे अवश्य पढ़ना , मैं भारत का संविधान हूं.
मै ही तो हूं जो तुम्हे सही से जीने का हक दिया, मै ही तो हूं जो तुम्हे लोकतांत्रिक अधिकारों से परिचित कराया!
मै ही तो हूं जो समस्त धर्मों को समान तराजू में तौलने का प्रयास किया.
वरना तुम सभी खुद को सर्वश्रेष्ठ और दूसरों को निकृष्ट समझ बैठे थे. मै ये नहीं कहता कि तुम अपने आप को श्रेष्ठ मत समझो परंतु तुम्हे दूसरों को निकृष्ट समझने की घटिया सोच भी नहीं रखनी चहिए.
तुम्हारे प्रत्येक काव्यों और ग्रंथो में कुछ वर्गों का जरूर उपेक्षित भाव से देखने का प्रयास किया गया है. परंतु मुझमें (मेरी ग्रंथ में) सभी वर्गों का सामान दर्जा देने का प्रयास है.
तुम्हारे हर समस्याओं का समाधान हूं मैं, कभी वक्त मिले तो जरूर पढ़ना, भारत का संविधान हूं मैं. संविधान दिवस पर संबोधन में बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर के विचार…