आज ही के दिन 10 मई, 1857 को आजादी की लड़ाई शुरू हुई जिसमें गोरखपुर शहर रहने वाले रिसालदार जागीरदार एवं प्रशासनिक

व्यवस्था को देखने वाले सरदार अली खान के नेतृत्व में बेगम हजरत महल के निर्देश पर गोरखपुर शहर को 6 महीनों के लिए अंग्रेजों से आजाद करा दिया.

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जनवरी 1858 में पुनः जब गोरखपुर के ऊपर अंग्रेजों का कब्जा हुआ तब उन्होंने शहीद सरदार अली खां को

पूरे परिवार के लोगों के साथ उनकी हवेली जो कि वर्तमान में कोतवाली में है, वहीं पर दफन कर दिया.

आज भी उनकी कब्र मौजूद है, जो आजादी की लड़ाई के उस इतिहास को निरंतर सबके सामने चरितार्थ करती हुई दिखाई देती है.

आज 10 मई के अवसर पर गोरखपुर शहर के विभिन्न सामाजिक संगठन के लोगों, समाजसेवियों एवं साहित्यकारों ने उनकी मजार पर चादर चढ़ा के श्रद्धा सुमन अर्पित किया एवं 1858 के सभी क्रांति वीरों को याद किया.

इस अवसर पर गोरखपुर शहर के वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर कृष्ण कुमार पांडेय ने बताया कि शहीद सरदार अली खान जंगे आजादी में पहले ऐसे व्यक्ति थे

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जिनका पूरा खानदान स्वयं गोरखपुर में रहते हुए गोरखपुर के लिए उन्होंने योगदान दिया. इस अवसर पर शहीद सरदार अली खान की पांचवी पीढ़ी

के मुख्तार खान, गोरखपुर शहर के वरिष्ठ इतिहासकार प्रोफेसर कृष्ण कुमार पांडेय, पूर्व मेयर गोरखपुर डॉक्टर सत्या पांडेय,

गुरुद्वारा जटाशंकर के अध्यक्ष सरदार जसपाल सिंह, युवा शायर ई. मिन्नत गोरखपुरी, हाजी जलालुद्दीन कादरी, मोहम्मद आकिब अंसारी,

एडवोकेट अनीस अहमद, सैय्यद इरशाद अहमद, वरिष्ठ उप निरीक्षक कोतवाली रतन कुमार पांडेय, हिफजुर्रहमान अजमल एडवोकेट, मो. सोहराब, मोहम्मद शमशाद सहित अधिक संख्या में लोग उपस्थित रहे.

कार्यक्रम के आयोजक शहीद सरदार अली खान की पांचवीं पीढ़ी के वंशज मुख्तार खान ने लोगों को अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया.

साथ ही यह कहा कि शहीद सरदार अली खां को वह स्थान नहीं मिला जो उनको मिलना चाहिए था.

उन्होंने उत्तर प्रदेश की सरकार से यह मांग किया कि कोतवाली के गेट का नाम शहीद सरदार अली खां के नाम पर किया जाए

और आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत इस स्थान को विकसित किया जाए ताकि आने वाली नस्लें अपने वीरों को याद कर सके और उनसे प्रेरणा ले सकें.

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