GORAKHPUR: जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए नेतृत्वकर्ता को किस हद तक कुर्बानी देकर आवाज उठानी पड़ती है इसका अंदाजा हम आजाद भारत के वर्तमान समय में देख सकते हैं.
आज हम स्वतंत्र देश में संवैधानिक मूल्यों द्वारा शासित हो रहे हैं जिसमें शासक और शासित दोनों एक ही देश के नागरिक हैं. आप अंदाजा लगाइए ब्रिटिश हुकूमत के दौर का जहां शासक विदेशी थे और शासित भारतीय नागरिक.
अंग्रेजों से अपने अधिकारों तथा सम्मान के लिए भारतीय लोगों ने कितना लोहा लिया होगा इसका अनुमान भी दिल दहला देने वाला है.
आज पूर्वांचल गांधी डॉ संपूर्णानंद मल्ल राष्ट्रपति सहित अनेक जिम्ममेदारों को सैकड़ों पत्रों के जरिए जनता की समस्याओं से अवगत कराया. किंतु हाय रे लोकतंत्र और इसके रेगुलेटर उन पर तनिक भी जूं नहीं रेंग रही है.
पूर्वांचल गांधी ने लिखकर पूछा है कि महामहिम मेरे कई सौ पत्रों /ज्ञापनों का जवाब क्यों नहीं दिया गया? मैं कोई ऐसा लोकतंत्र नहीं जानता जो ‘जवाबदेहविहीन’ संवादरहित’ हो.
इरविन का वायसराय हाउस जिसे आज राष्ट्रपति भवन कहा जाता है-भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के फांसी/माफी पत्रों का जवाब नहीं देता था.’
हमारे पेट और पर पथ पर कर क्यों लगाया गया? शिक्षा, चिकित्सा, संचार, महंगा क्यों किया? कर एवं कीमत बढ़ाकर हमारा जीवन हमारी स्वतंत्रता छीनना संविधान की हत्या एवं अपराध है.
आटा, चावल, गेहूं, दाल, तेल, चीनी, दवा, दही, दूध, प्राण यानि जीवन है. इस पर ‘कर’ लगाना जीवन के अधिकार अनुच्छेद 21 की हत्या है.
इसे महंगी कीमतों पर क्यों बेच रहे हैं? जिस देश में 80 करोड़ कंगाल एवं 22 करोड़ कुपोषित जिनके पास कौड़ी नहीं है, जीवन के जरूरतों से वंचित है.
कर्मचारियों के बुढ़ापे की लाठी ‘पेंशन’ उन्हें वापस कीजिए, गरीबों को गैस सिलेंडर मुफ़्त दीजिए. आखिर जब सभी ज़रूरतें विधायिका, कार्यपालिका के माननीयों को फ्री दी जा सकती हैं तो इनको क्यों नहीं.?
इन्होंने कड़े शब्दों में कहा है कि बार-बार निवेदन के बाद भी यदि जीवन, मार्ग, शिक्षा, चिकित्सा, रेल पर कर एवं कीमत समाप्त नहीं हुई तो इसे उसी ढंग से तोडूंगा जैसे गांधी ने फिरंगियों का नमक कानून तोड़ा था.
{पूर्वांचल गाधी-9415418263}