Gorakhpur: जब देश में चारों तरफ शोर, आवाज, मैसेज, बधाइयां, शुभकामनाएं, बुराई पर अच्छाई की जीत, अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाने वाला
विजयदशमी के त्यौहार में लोग झूम रहे हैं तो ऐसे मौके पर पूर्वांचल गांधी डॉक्टर संपूर्णानंद मल्ल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर बताया है कि-
“हर वर्ष विजयदशमी पर हमारी अच्छाई, मूल्य, चरित्र, मानवता पहले से कमजोर हो जाती है और बुराई मजबूत यानी झूठ, हिंसा, चोरी, अपराध, बलात्कार में वृद्धि हो जाती है.”
जगह-जगह पंडालों में मातृ सत्ता, मातृ सत्ता के हाथ में हथियार, शेर पर सवार एक पुरुष के सीने पर, जिसे पुरुष रूप ‘राक्षस’ दिखाया जाता है जो भैंसे पर सवार होता है, पैर रखी हुई.
उस पंडाल में और बाहर चारों तरफ इलेक्ट्रिक संचारित हिंसक वाक्य एवं शोर किसी अराजकता एवं हिंसा संकेतक से कम नहीं. शराबी, लफंगे, निठल्ले, गजेड़ी, हिंसा में उद्धत,
बलात्कार एवं व्यभिचार में लिप्त गंदे-गंदे गाने, बाजे, DJ पर नाचने वाले, धर्म यानी सत्य, अहिंसा, अस्तेय से अनभिज्ञ नजर आते हैं.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गाँधी ने कहा कि वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता जो हमारे धर्म के स्रोत ग्रंथ हैं, में ऐसे त्योहार का कोई जिक्र ही नहीं है.
देवी की उपासना पैदा करने वाली माँ के लिए की गई है किन्तु इस अराजक त्यौहार की आड़ में चोर, बलात्कारी, हिंसक अपराधी देवत्व रूप प्राप्त करने की कोशिश करते हैं.
जबकि आयोजक देवी पुत्र, देवी भक्त के रूप में अपने को सिद्ध करने की कोशिश करते हैं. इस विकट परिश्सथिति में किससे पूछूं कि सत्य, अहिंसा की विरासत के इस महान मुल्क में आखिर यह हिंसा प्रदर्शन क्यों?