हरिद्वार: धर्म संसद में दिए गए नफरती भाषण के विरोध में 76 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट को लिखा पत्र

यह बहुत ही हैरान कर देने वाला विषय है कि हमारे देश में संविधान ने यहां निवास करने वाले प्रत्येक धार्मिक वर्ग को उसकी स्वतंत्रता का अधिकार दिया है.

किंतु जब स्वयं को साधु, सन्यासी और महात्मा कहने वाला तबका ही खुद इस देश के एक बड़े समुदाय के प्रति नफरती भाषणबाजी करने से बाज नहीं आता है

तो यह सोचकर बड़ा अजीब लगता है कि आखिर इनके प्रति प्रशासनिक मशीनरी गूंगी बनी क्यों बैठी रहती है.?

आपको बता दें कि 17 से 19 दिसंबर के बीच हरिद्वार में हुई कथित साधु संतों की बैठक में देश के संवैधानिक मूल्यों और सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ लगातार भाषण दिए गए.

यहां तक कि अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हथियार उठाने तक की भी शपथ ली गई. इस तथ्य को गंभीरता से लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय के 76 वकीलों ने

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को पत्र लिखा है जिसमें बताया है कि धर्म संसद की आड़ में दिए गए इस भाषण पर संज्ञान लेकर तत्काल कार्यवाही किया जाए.

इस तरह के भाषण न केवल हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है बल्कि लाखों मुस्लिम नागरिकों के जीवन को भी खतरे के साए में डाल दिए है.

मुस्लिमों के विरुद्ध नरसंहार और हथियारों की खुले इस्तेमाल के आह्वान पर अखिल वर्तमान सरकार के संरक्षण में पल रहे नुमाइंदे क्या संदेश देना चाहते हैं.?

हिंदू रक्षा सेना के प्रबोध आनंद गिरी जो योगी आदित्यनाथ तथा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के साथ अक्सर फोटो खिंचवाते हुए नजर आते हैं,

उनका बयान और भी शर्मिंदा करने वाला है. एक टीवी चैनल से बात करते हुए गिरी ने कहा है कि मैं पुलिस से नहीं डरता मैं अपने बयान पर कायम हूं.

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गिरी ने बताया कि म्यांमार की तरह हमारी पुलिस, हमारे राजनेता, हमारी सेना और हर हिंदू को

हथियार उठाना चाहिए तथा जाति विशेष की अधिक सफाई अभियान करना चाहिए कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है.

पत्र के माध्यम से अधिवक्ताओं ने अपील किया है कि “हम देश की न्यायपालिका के प्रमुख के रूप में आप की क्षमता के अनुरूप त्वरित कार्यवाही की उम्मीद करते हुए आप को पत्र लिख रहे हैं.

न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ-साथ एक बहुत सांस्कृतिक राष्ट्र के कामकाज के लिए मौलिक संवैधानिक मूल्यों के लिए सुप्रीम कोर्ट की प्रतिबद्धता से हम परिचित हैं.”

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