रायपुर: छत्तीसगढ़ के विभिन्न जनवादी संगठनों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नागरिकों ने हसदेव अरण्य में हो रही पेड़ कटाई और प्रभावित
आदिवासी समुदाय पर पुलिसिया दमन के विरोध में आज रायपुर में मोतीबाग से अम्बेडकर चौक तक नागरिक प्रतिरोध मार्च निकाला.
इस मुद्दे पर राज्यपाल के हस्तक्षेप की मांग करते हुए उन्हें ज्ञापन सौंपा. इन संगठनों ने ‘हसदेव चलो’ का आह्वान करते हुए 7 जनवरी को यहां भी
‘नागरिक प्रतिरोध मार्च’ आयोजित करने का निर्णय लिया है, जिसमें पूरे प्रदेश के संवेदनशील नागरिक शामिल होंगे.
उल्लेखनीय है कि हसदेव अरण्य पांचवी अनुसूची क्षेत्र में शामिल है, इसके बावजूद पेसा कानून और आदिवासियों के तमाम संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए
21 दिसम्बर, 2023 को हसदेव के सरगुजा में परसा ईस्ट केते बसन कोयला खदान परियोजना के फेस-II में वन भूमि में पेड़ों में कटाई शुरू कर दी गई है.
इसका विरोध करने वाले प्रभावित आदिवासी समुदाय के लोगों और गांवों को पुलिस का पहरा बैठाकर बंधक बना लिया गया था.
रायपुर से हसदेव जा रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के सदस्यों को भी बीच रास्ते पुलिस ने हिरासत में ले लिया. यह कटाई पूरे तीन दिनों तक चली है.
जल, जंगल और जमीन बचाने संघर्षरत लोगों पर किये गए इस दमनात्मक कार्यवाही और हसदेव के विनाश के विरोध में इसके बाद से ही कई जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं.
सोशल मीडिया में भी अभियान चल रहा है, रायपुर में आयोजित नागरिक प्रतिरोध मार्च इसी श्रृंखला की एक कड़ी थी.
नागरिक प्रतिरोध मार्च के माध्यम से लोगों ने अपने ज्ञापन में राज्यपाल और राज्य सरकार से अपील किया है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा में
हसदेव क्षेत्र को खनन मुक्त रखने के उद्देश्य से 26 जुलाई, 2022 को सर्वानुमति से पारित अशासकीय संकल्प का पालन करते हुए तथा
इस क्षेत्र की ग्राम सभाओं द्वारा खनन परियोजनाओं को सहमति न देने के मद्देनजर इस क्षेत्र में आबंटित सभी कोल ब्लॉक रद्द किए जाएं.
ज्ञापन में नागरिकों ने इस बात पर बल दिया है कि केंद्र सरकार के ही एक संस्थान “भारतीय वन्य जीव संस्थान” ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि
“हसदेव अरण्य में कोयला खनन से हसदेव नदी और बांगो बांध के अस्तित्व पर संकट होगा. प्रदेश में मानव हाथी संघर्ष इतना बढ़ जाएगा कि फिर कभी उसे संभाला नही जा सकता.”
इस रिपोर्ट के बाद भी हसदेव अरण्य में खनन परियोजनाओं को आगे बढ़ाना प्रदेश के लिए आत्मघाती कदम होगा.
नागरिकों ने हसदेव में परसा कोल ब्लॉक में वन स्वीकृति हासिल करने के लिए की गई फर्जी ग्राम सभा का भी विरोध किया है तथा राज्यपाल
का ध्यान इस ओर आकर्षित किया है कि अगर हसदेव के जंगल उजाड़ कर कोयला निकालना विकास के लिए जरूरी है, तो यह सब गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीकों से क्यों किया जा रहा है?
क्यों सरकारें फर्जी ग्राम सभा की जांच से पीछे हट रही हैं और हसदेव बचाने के लिए चल रहे आंदोलन का दमन कर रही हैं,
जबकि गैरकानूनी स्वीकृति के खिलाफ हसदेव में आदिवासी समुदाय 665 दिनों से लगातार शांतिपूर्वक आन्दोलन कर रहा है.
ज्ञापन में कहा गया है कि हसदेव के जंगल छत्तीसगढ़ के फेफड़े हैं, हसदेव नदी और बांगो बांध का कैचमेंट है, असंख्य वन्य जीवों समेत हाथी और बाघ का महत्वपूर्ण रहवास है,
आदिवासी समुदाय की संस्कृति और आजीविका इन से जुडी हुई है, इसलिए हसदेव के जंगलों के विनाश से छत्तीसगढ़ का ही विनाश होगा.
ऐसे समय जब कोयले का विकल्प मौजूद है, इस जलवायु परिवर्तन के दौर में ऐसे वन क्षेत्रों को उजाड़ना आत्मघाती कदम है.
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े संगठनों ने घोषणा किया है कि आने वाले दिनों में हसदेव को कॉर्पोरेट लूट से बचाने हर जिले में प्रदर्शन होंगे.
इसके साथ ही 7 जनवरी को हसदेव में नागरिक प्रतिरोध मार्च का आयोजन करने की घोषणा की गई है जिसमें पूरे प्रदेश के संवेदनशील नागरिकों और संगठनों को आमंत्रित किया जा रहा है.
नागरिक प्रतिरोध मार्च में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति), छत्तीसगढ़ किसान सभा,
छत्तीसगढ़िया क्रांति सेना, जोहर छत्तीसगढ़ पार्टी, नदी घाटी मोर्चा, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, छत्तीसगढ़ किसान महासभा,
सीपीआई (एमएल) रेडस्टार, महानदी बचाओ आंदोलन सहित विभिन्न संगठन और संवेदनशील नागरिक शामिल हुए.