BY– THE FIRE TEAM
हिमाचल हाईकोर्ट ने वन भूमि पर अतिक्रमण हटाने को लेकर चल रहे मामले की सुनवाई के दौरान बड़ा आदेश जारी किया है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए कि वह वन भूमि से पेड़ों को काटे बिना ही अतिक्रमण हटाए। इससे पहले के आदेश में हाईकोर्ट ने कब्जे हटाने के लिए पेड़ काटने के आदेश जारी किए थे।
न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी और न्यायाधीश सीबी बारोवालिया की खंडपीठ ने आदेश दिया कि जिस वन भूमि पर लोगोें ने अतिक्रमण कर रखा है, वहां बिना पेड़ काटे पक्की चहारदीवारी लगाकर सरकार उस जमीन को अपने कब्जे में ले। आदेश में यह भी कहा गया कि चारदीवारी बनाने का सारा खर्च अतिक्रमणकारियों से वसूला जाए।
खंडपीठ ने आदेश दिए हैं कि 30 मार्च से पहले हाईकोर्ट के पिछले उन आदेशों की अनुपालना करें, जिसके तहत शिमला जिले के जुब्बल और कोटखाई तहसील के बड़े अतिक्रमणकारियों से कब्जा छुड़ाने को कहा गया था। कोर्ट ने एसआईटी को आदेश दिए हैं कि वह अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी करें, जिस दिन उन्होंने अवैध कब्जे वाली भूमि की पहचान करनी हो। कोर्ट ने कहा कि अतिक्रमण वाली भूमि से हरे पेड़ों को काटना पर्यावरण के हित में नहीं है।
एक ही परिवार के 13 सदस्यों ने कब्जाई 2700 बीघा वन भूमि
हाईकोर्ट ने एसआईटी की ओर से आदेशों की अनुपालना न करने पर भी खेद जताया। कोर्ट ने सरकार से अन्य जिलों की अतिक्रमण की स्थिति के बारे में अवगत करवाने को कहा है। इस बाबत सचिव वन को हलफनामा दायर करने की भी आदेश दिए हैं।
वन भूमि पर अतिक्रमणकारियों के चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जिनमें तहसील जुब्बल के एक ही परिवार के 13 सदस्यों ने 2700 बीघा जमीन पर कब्जा किया था। कोटखाई तहसील में भी एक ही गांव के लोगों ने 1500 बीघा से ज्यादा वन भूमि पर कब्जा किया था।
छह अप्रैल 2015 को न्यायाधीश राजीव शर्मा की खंडपीठ ने सरकार को वन भूमि से अतिक्रमण तुरंत हटाने के आदेश दिए थे और अतिक्रमणकारियों के बिजली-पानी कनेक्शन काटने को भी कहा था। इन आदेशों के बाद राज्य सरकार हरकत मेें आई और शिमला जिला के ऊपरी क्षेत्रों में लगभग सैकड़ों बीघा से अतिक्रमण हटाया गया।
पांच हजार से अधिक सेब के पेड़ोें को काट गिराया गया। जुलाई 2018 में हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने को एसआईटी गठित की थी। इसके लिए सेना की ईको टास्क फोर्स को भी मदद के लिए तैनात किया था।