वर्तमान कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका तथा शुरू होने वाले कांवड़ यात्रा के बीच बढ़ते जद्दोजहद के बाद अंततः उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया है.
ऐसे में हिंदू महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पंडित अशोक शर्मा ने इस पर टिप्पणी करते हुए मांग किया कि-” जब तक कोरोनावायरस वैश्विक महामारी पूरी तरह खत्म नहीं हो जाती तब तक कोई भी राजनीतिक कार्यक्रम जैसे चुनाव,
राजनीतिक बैठक, किसी भी नेता का शपथ ग्रहण समारोह, धरना प्रदर्शन अथवा राजनीतिक फायदे के लिए होने वाली कोई भी बैठक नहीं होनी चाहिए.”
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— First India News (@1stIndiaNews) July 18, 2021
आपको बता दें कि शर्मा तथा हिंदू महासभा के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक अग्रवाल ने योगी सरकार के कावड़ यात्रा रद्द करने के फैसले पर भी सवाल उठाया और यह पूछा कि सरकार जिन कांवड़ संघ से बात करके यह निर्णय लिया है हम ऐसे किसी भी संघ को नहीं जानते हैं.
अग्रवाल ने कहा कि मैं स्वयं पिछले 20 वर्षों से विशाल कांवड़ यात्रा का प्रबंध कर रहा हूं जिसमें लाखों लोगों को करोड़ों रुपए का व्यापार लाभ मिलता है. लेकिन आज लोग अपने स्वार्थों के कारण तथा राजनीतिक लाभ के लिए हमारी महान यात्रा को खंडित कर रहे हैं.
क्या महत्व है कांवड़ यात्रा का?
ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में ही समुद्र मंथन किया गया था. इस दौरान बड़ी मात्रा में विष निकला जिसका सेवन शिव जी ने संसार को बचाने के लिए किया था.
इसके कारण उनका शरीर जलने लगा तब शिव के शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए देवताओं में जल अर्पित करना प्रारंभ किया.
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दूसरी मान्यता यह भी है कि सर्वप्रथम भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर शिवजी को चढ़ाया था. तभी से सावन के महीने में यह परंपरा निभाई जाती है.
एक अन्य मत यह भी है कि त्रेता युग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी. श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी जिसकी पूर्ति करने के लिए वह कांवड़ में उन्हें बैठाकर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया.