सऊदी अरब के शाही परिवार से असहमति रखने वाले जाने-माने पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी के पिछले हफ़्ते तुर्की के इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास से ग़ायब होने का असर मध्य-पूर्व और अमरीकी हितों पर गहरा पड़ सकता है.
ख़ाशोज्जी दो अक्टूबर को अंकारा स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में आए थे और अभी तक कोई सबूत सामने नहीं आया है जिससे पता चल सके कि वो दूतावास से ज़िंदा बाहर निकले थे.
तुर्की का कहना है कि उसके पास सर्विलांस ऑडियो टेप है जिससे पता चलता है कि ख़ाशोज्जी से दूतावास के भीतर पूछताछ हुई, उन्हें प्रताड़ित किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. हालांकि तुर्की ने कोई भी ऑडियो टेप अब तक सार्वजनिक नहीं किया है.
सऊदी ने ख़ाशोज्जी के ग़ायब होने में अपनी किसी भी भूमिका से इनकार किया है. दूसरी तरफ़ अमरीका और तुर्की के ख़ुफ़िया अधिकारियों का कहना है कि सऊदी के एजेंट प्राइवेट जेट से उसी दिन अंकारा आए थे जिस दिन जमाल ख़ाशोज्जी ग़ायब हुए.
सऊदी का कहना है कि अगर उसके ख़िलाफ ख़ाशोज्जी मसले को लेकर कोई प्रतिबंध लगाए गए तो वो उसका करारा जवाब देगा.
आपको बता दें कि सऊदी से जुड़े सभी तरह के संकट और विवादों में 33 साल के क्राउन प्रिंस मोहम्मद-बिन-सलमान (एमबीएस) की चर्चा केंद्र में रहती है.
सलमान सऊदी में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सुधारों में प्रभावी रूप से आगे बढ़ रहे हैं. ट्रंप प्रशासन ने भी एमबीएस से मज़बूत संबंध बनाए हैं. ट्रंप को लगता है कि मोहम्मद बिन सलमान ईरान को लेकर काफ़ी सख़्त हैं और ये रवैया उनसे मेल खाता है.
एमबीएस को इसराइल से भी मदद लेने में कोई समस्या नहीं है. कहा जा रहा है कि इतना कुछ होने के बावजूद अगर यह साबित होता है कि ख़ाशोज्जी की हत्या में उनकी भूमिका थी तो इसकी क़ीमत उन्हें चुकानी होगी.
चूँकि वॉशिंगटन पोस्ट में छपने वाले अपने कॉलम में ख़ाशोज्जी एमबीएस की कड़ी आलोचना करते थे. एमबीएस की एक छवि बनी है वो परिणामों की चिंता किए बिना फ़ैसले लेते हैं
और जानकार मानते हैं कि इसके नतीजे यमन में देखे जा सकते हैं जहां सऊदी न जीतने वाली लड़ाई में संसाधन फूंक रहा है. सऊदी की बमबारी से यमन में हज़ारों नागरिक मारे गए हैं.
ख़ाशोज्जी पर शक के दायरे में सऊदी
जमाल ख़ाशोज्जी का मामला अब राजनीतिक हो गया है. ख़ाशोज्जी को लेकर एबीएस ने अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि वो तुर्की स्थिति वाणिज्य दूतावास में आने के तत्काल बाद ही निकल गए थे.
किंतु हैरान करने वाला पहलू यह है कि यदि वाणिज्य दूतावास में कई सर्विलांस कैमरे लगे हैं, तो जमाल का जाना रिकॉर्ड क्यों नहीं हुआ ?
ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब एमबीएस को देने हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि अगर सऊदी ने ऐसा किया है तो यह बहुत ही ख़राब होगा.
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि अगर सऊदी इसमें दोषी पाया जाता है तो उसे गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. जर्मनी ने भी जल्दी जांच की मांग की है और ब्रिटेन ने भी इस मामले में कड़ा रुख दिखाया है.
एमबीएस का व्यवहार मानवाधिकारों को लेकर अमरीका का भरोसा खोए बिना आक्रामक रहा है. एमबीएस ने न केवल देश के भीतर अपनी शर्तों पर काम किया बल्कि पड़ोसी देशों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार रहा.
एमबीएस ने क़तर पर नाकेबंदी कर दी, यमन में युद्ध छेड़ दिया और ईरान से सारे राजनयिक संबंध ख़त्म कर दिए. क़तर से अमरीका के भी अच्छे संबंध हैं, लेकिन फिर भी वो सऊदी को नाकेबंदी से रोक नहीं पाया.
यमन में सऊदी पिछले तीन सालों से अमरीकी हथियारों के दम पर लड़ रहा है और अमरीका भी साथ दे रहा है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ इस युद्ध के कारण 80 लाख लोग भुखमरी की कगार पर खड़े हैं.