आखिर क्या है प्राचीन रेशम मार्ग: जिसकी तर्ज पर उज्बेकिस्तान में सिलीकॉन मार्ग का इच्छुक है भारत

BY THE FIRE TEAM

भारत प्राचीन ‘रेशम मार्ग’ की तर्ज पर उज्बेकिस्तान को नए सिलिकॉन मार्ग का हिस्सा बनाना चाहता है। केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने शनिवार को यह बात कही।

प्रभु ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि उज्बेकिस्तान एक समय प्राचीन रेशम मार्ग का हिस्सा था। यह रास्ता एशिया से यूरोप को जोड़ता है।

उन्होंने कहा कि भारत और उज्बेकिस्तान नई एवं उन्नत प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देने में सहयोग करते हुए नए सिलिकॉन मार्ग का विकास कर सकते हैं। दोनों देशों को सेवा क्षेत्र में भी सहयोग मजबूत करने की जरूरत है।

प्रभु ने भारत-उज्बेकिस्तान बिजनेस फोरम को संबोधित करते हुये कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा बनाने के लिए इस क्षेत्र के विभिन्न देशों के साथ काम कर रहा है। यह गलियारा भारत और मध्य एशिया के बीच परिवहन लागत कम करने में अहम साबित होगा।

उन्होंने जोर दिया कि कौशल विकास, चिकित्सकीय उपचार, खाद्य प्रसंस्करण और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया जा सकता है।

क्या है प्राचीन रेशम मार्ग –

प्राचीनकाल और मध्यकाल में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का एक समूह था जिसके माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीका जुड़े हुए थे। इसका सबसे जाना-माना हिस्सा उत्तरी रेशम मार्ग है जो चीन से होकर पश्चिम की ओर पहले मध्य एशिया में और फिर यूरोप में जाता था और जिस से निकलती एक शाखा भारत से जुड़ी थी।

रेशम मार्ग का जमीनी हिस्सा ६,५०० किमी लम्बा था और इसका नाम चीन के रेशम के नाम पर पड़ा जिसका व्यापार इस मार्ग की मुख्य विशेषता थी। इसके माध्यम से वस्तुएँ मध्य एशिया, यूरोप, भारत और ईरान में चीन के हान राजवंश काल में पहुँचना शुरू हुईं।

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रेशम मार्ग का चीन, भारत, मिस्र(Egypt), ईरान, अरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। इस मार्ग के द्वारा व्यापार के आलावा, ज्ञान, धर्म, संस्कृति, भाषाएँ, विचारधाराएँ, भिक्षु, तीर्थयात्री, सैनिक, घूमन्तू जातियाँ, और बीमारियाँ भी फैलीं।

व्यापारिक नज़रिए से चीन रेशम, चाय और चीनी मिटटी के बर्तन भेजता था, भारत मसाले, हाथीदांत, कपड़े, काली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोना, चांदी की वस्तुएँ, शराब, कालीन और गहने आते थे। हालांकि ‘रेशम मार्ग’ के नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था वास्तव में बहुत कम लोग इसके पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे।

अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान हाथ बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था। शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थे, फिर सोगदाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के मिश्रण भी पैदा हुए, मसलन तारिम द्रोणी, बैक्ट्रियाई, भारतीय और सोग़दाई लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।

उज्बेकिस्तान के बारे में-

उज्बेकिस्तान अरल सागर से सीमा बनाते हुए अपनी खास लोकेशन के कारण काफी महत्वपूर्ण देश है। इसके पड़ोसी देशों की बात की जाए तो उसमें कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान तथा तुर्कमेनिस्तान शामिल हैं। यह 1991 तक जब तक कि सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ उसका एक हिस्सा था।

महत्वपूर्ण पहलू यह है कि पहले भी उज़्बेकिस्तान, सोवियत संघ का हिस्सा नहीं था। जब 19वीं सदी में  रूसी साम्राज्य तेजी से बढ़ा तब यह भी इसकी चपेट में आ गया और 1924 में सोवियत संघ का अंग बन गया। यदि इस देश के प्रमुख शहरों की बात की जाए तो उसमें राजधानी ताशकंद के अलावा समरकंद तथा बुखारा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।

Prime Minister Narendra Modi shakes hands with Uzbekistan President Shavkat Mirziyoyev during a meeting on the sidelines of the Shanghai Cooperation Organisation Summit, in Qingdao, China on June 9, 2018.
photo:pti

उत्तरी रेशम मार्ग-

वर्तमान जनवादी गणतंत्र चीन के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक मार्ग है जो चीन की प्राचीन राजधानी शियान से पश्चिम की ओर जाते हुए टकलामकान रेगिस्तान से उत्तर निकलकर मध्य एशिया के प्राचीन बैक्ट्रिया और पार्थिया राज्य और फिर और भी आगे ईरान और प्राचीन रोम पहुंचता था।

यह मशहूर रेशम मार्ग की उत्तरतम शाखा है। इस पर हजारों सालों से चीन और मध्य एशिया के बीच व्यापारिक, फौजी और सांस्कृतिक गतिविधियां होती रही हैं।

पहली सहस्राब्दी यानी हजार साल ईसा पूर्व में चीन के हान राजवंश ने इस मार्ग को चीनी व्यापारियों और सैनिकों के लिए सुरक्षित बनाने के लिए यहां पर सक्रिय जातियों के खिलाफ बहुत अभियान चलाए। जिससे इस मार्ग का प्रयोग और विस्तृत हुआ। चीनी सम्राटों ने विशेषकर शियोंगनु लोगों के प्रभाव को कम करने के बहुत प्रयास किए।

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