BY-THE FIRE TEAM
विश्व में आज एक बड़ी समस्या महिलाओं द्वारा गर्भनिरोधक गोलियों के प्रति बढ़ता आकर्षण है. इसने कई तरह की परेशानियों को जन्म दिया है मसलन -मरदाना लक्षणों का दिखना, अनियमित माहवारी , बेचैनी ,उतावलापन ,चिड़चिड़ा स्वाभाव आदि.
हालाँकि इन गोलियों का इस्तेमाल उन्हें गर्भ धारण से बेफ़िक्र करती हैं क्योंकि गर्भ धारण करने में हार्मोन का बड़ा रोल होता है और ये गोलियां उन हार्मोन्स को काम करने से रोकती हैं.
किन्तु गर्भ निरोधक गोलियां खाने वाली ज़्यादातर महिलाएं नहीं जानतीं हैं कि वो एक गोली के साथ आठ तरह के हार्मोन निगलती हैं. इन आठ हार्मोन्स में से कुछ ऐसे भी हैं जो शरीर को मर्दाना पहचान देने लगते हैं.
दावा किया जाता है कि गर्भनिरोधक गोलियों में एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन होता है जबकि सच्चाई ये है कि किसी भी गोली में ये क़ुदरती हार्मोन नहीं होते.
बल्कि इन हार्मोन का सिंथेटिक वर्जन गोली में डाला जाता है. जोकि नेचुरल हार्मोन से ज़्यादा स्थाई होता है
हर गर्भ निरोधक गोली में एक ही तरह के सिंथेटिक एस्ट्रोजन, एथीनील एस्ट्रॉडिऑल और प्रोजेस्टेरोन होते हैं. एथीनील एस्ट्रॉडिऑल हर महीने बच्चेदानी में अंडाणु विकसित होने से रोकता है.
जबकि प्रोजेस्टेरोन बच्चेदानी के मुहाने पर मोटी परत जमा देता है, जिससे बच्चेदानी में स्पर्म के लिए कोई जगह नहीं रह पाती.
इत्तिफ़ाक़ से अगर कोई अंडाणु गर्भाशय के अंदर चला भी जाता है तो वो वहां विकसित नहीं हो पाता. और बेकार होकर माहवारी के रक्त के साथ बाहर निकल जाता है. यहां तक तो हार्मोन की कहानी तसल्लीबख़्श है.
लेकिन हाल की रिसर्च साबित करती हैं कि गोलियों के साथ जो आर्टिफ़िशियल हार्मोन हम निगलते हैं, वो हमारे क़ुदरती हार्मोन्स के साथ सही तालमेल नहीं बैठा पाते.
अगर आप इंटरनेट पर गर्भनिरोधक गोलियां लेने वाली महिलाओं की दास्तान सुनेंगे तो होश फ़ाख़्ता हो जाएंगे.
कोई कहती है कि उसके गालों पर मर्दों की तरह बाल निकल आए हैं, किसी के चेहरे की खाल अजीब तरह से मोटी हो गई है, कोई कहती है उसका चेहरा मुहासों से भर गया है.
शरीर में आने लगता है बदलाव
2012 की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक़ 83 फ़ीसद अमरीकी महिलाएं उन गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं, जिनमें ऐसे प्रोजेस्टेरोन का इस्तेमाल होता है जोकि मर्दों के हार्मोन से तैयार होता है.
इन गोलियों में मर्दों के जिस टेस्टेस्टेरोन हार्मोन का इस्तेमाल होता है उसका नाम है नेन्डरोलोन.
ये वो हार्मोन है जो मर्दों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम को विकसित करता है. लिहाज़ा जब महिलाएं इस हार्मोन को गोली की शक्ल में निगलती हैं, तो उनके शरीर में भी मर्दाना बदलाव आने लगते हैं.
ऑस्ट्रिया की साल्ज़बर्ग यूनिवर्सिटी की न्यूरोसाइंटिस्ट ब्लेंडा प्लेत्सर का कहना है कि ये हार्मोन मांसपेशियां मज़बूत करने और मसल्स बनाने में मददगार होता है. यही वजह है कि बॉक्सर डोपिंग में इसका इस्तेमाल करते हैं.
2015 में मशहूर हेवीवेट वर्ल्ड चैम्पियन बॉक्सर टाइसन फ्यूरी इस हार्मोन के सेवन के दोषी पाए गए थे, उन पर दो साल की पाबंदी लगा दी गई थी.
गर्भ निरोधक गोलियों के नुक़सान के बारे में रिसर्चर बहुत पहले से जानते हैं. 40, 50 और 60 के दशक में महिलाओं ने गर्भपात से बचने के लिए नोरथिंडरोन हार्मोन का इस्तेमाल किया था जोकि एंड्रोजेनिक था.
इस हार्मोन के सेवन से गर्भपात तो रुके लेकिन, महिलाओं को दूसरी समस्याएं होने लगीं. जैसे उनके शरीर पर धब्बे पड़ने लगे, चेहरे पर बाल उगने लगे.
कुछ की आवाज़ बदलने लगी, यहां तक कि हर पांच लड़कियों में एक ऐसी बच्ची पैदा होने लगी जिसका लिंग मर्दाना था. बाद में इनकी सर्जरी करवानी पड़ती थी.
लेकिन आज जो गोलियां तैयार की जा रही हैं उनमें एंड्रोजेनिक प्रोजेस्टेन बहुत कम हैं. इसके अलावा बाकी के हार्मोन सिंथेटिक एस्ट्रोजन के साथ मिलाए जाते हैं जिससे हार्मोन के मर्दाना असर कम हो जाते हैं.
2015 में सामने आई रिसर्च बताती है कि हाल में सुधार के बाद जिस तरह की एंटी एंड्रोजेनिक प्रोजेस्टेन वाली गोलियां बाज़ार में उतारी गई हैं उनके नतीजे काफ़ी बेहतर हैं.
उनके इस्तेमाल से महिलाओं में मर्दाना बदलाव नहीं आते. लेकिन इनका भी दिमाग पर असर तो होता ही है. अगर लंबे वक़्त तक इनका सेवन किया जाए तो दिमाग के कुछ खास हिस्सों में फैलाव लगातार होता रहता है.
बहरहाल ओरल हार्मोन वाले कॉन्ट्रासेप्टिव हमारे बर्ताव और दिमाग पर कैसा असर डालते हैं इस पर रिसर्च जारी हैं. लेकिन इसे बीसवीं सदी की सबसे बड़ी क्रांति कहना ग़लत नहीं होगा.
ऐसे गर्भ निरोधकों ने महिलाओं को खुलकर सेक्सुअल लाइफ़ का मज़ा लेने का मौक़ा दिया है. किन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर चीज के अच्छे और बुरे दोनों पहलू होते हैं और किसी भी चीज़ की अति नुक़सान ही पहुंचाती है.