प्राप्त जानकारी के मुताबिक जस्टिस आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य चुनाव आयुक्त के रूप में किसी सरकारी अधिकारी को नियुक्त करने के संबंध में टिप्पणी करते हुए कहा है कि-
किसी सरकारी अधिकारी को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपना संविधान का माखौल उड़ाना है. न्यायमूर्ति नरीमन की बेंच ने इस बात पर भी जोर दिया है कि-
https://twitter.com/sarkari_indian/status/1370531640028626956?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1370531640028626956%7Ctwgr%5E%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fpublish.twitter.com%2F%3Fquery%3Dhttps3A2F2Ftwitter.com2Fsarkari_indian2Fstatus2F1370531640028626956widget%3DTweet
“चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से किसी तरह का कोई समझौता स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि स्वतंत्र व्यक्ति ही स्वतंत्र चुनाव के संपन्न करने का कार्य कर सकता है.”
सर्वोच्च न्यायालय की यह टिप्पणी गोवा सरकार के सचिव को राज्य का चुनाव आयुक्त बनाने के निर्णय पर की गई है. आपको यहां अवगत करा दें कि जस्टिस आर एफ नरीमन ने सरकार की इस नियुक्ति को संविधान का मजाक उड़ाने से किया गया है.
गोवा सरकार के सचिव को राज्य का चुनाव आयुक्त बनाना संविधान का मखौल उड़ाना है : सुप्रीम कोर्ट https://t.co/XE0IC05nSM
— प्रयागराज टाईम्स (@PrayagrajTimes) March 12, 2021
दरअसल, यह एक परेशान करने वाली तस्वीर है कि एक सरकारी कर्मचारी जो कि सरकार के साथ रोजगार में था, गोवा में चुनाव आयोग का प्रभारी बना दिया गया है.
इस सरकारी अधिकारी ने पंचायत चुनाव कराने के संबंध में भी उच्च न्यायालय के फैसले को बदलने का प्रयास किया है जो अप्रत्यक्ष तौर पर कई सारे तथ्यों की ओर इंगित कर रहा है.